कांग्रेस पार्टी के लोकसभा सांसद शशि थरूर और राहुल गांधी
नवभारत डेस्क: कांग्रेस पार्टी के लोकसभा सांसद शशि थरूर पार्टी के भीतर खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। जबसे उन्होंने पीएम मोदी और केरल में पिनराई विजयन की अगुआई वाली लेफ्ट सरकार की तारीफ की है, तब से पार्टी में वो हाशिए पर चले गए हैं। ऐसी अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि वो बीजेपी या सीपीएम में शामिल हो सकते हैं लेकिन उन्होंने इन अटकलों को खारिज कर दिया है।
वैसे कहते हैं न कि सियासत में कई बार जो दिखता है, वह होता नहीं। वहीं जो कहा जाता है, असल में हो रहा होता है उसके कुछ उलट ही है। थरूर के मामले में भी कुछ ऐसा ही है। पहले तो राहुल गांधी ने उनको दिल्ली तलब कर लिया और ऊपर से उनकी शिकायतों को दूर करने का कोई आश्वासन भी नहीं दिया। थरूर पूछते रहे कि पार्टी में उनका क्या रोल है, यह साफ कर दीजिए लेकिन राहुल ने तवज्जो ही नहीं दी। अब थरूर ने एक मलयालम पत्रिका के साथ पॉडकास्ट में तेवर दिखाए हैं। जिससे अटकलों का बाजार गर्म है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो शशि थरूर के पास सबसे बड़ा विकल्प तो एलडीएफ के साथ जाने का ही है। केरल की सियासत के लिहाज से ये एक निर्णायक मोड़ होगा। अभी तक जो थरूर कांग्रेस के वफादार सिपाही हुआ करते थे, अगर वो लेफ्ट के साथ चले जाते हैं, ये कांग्रेस के लिए उतनी ही बड़ी हार होगी जितनी बड़ी जीत लेफ्ट के लिए।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि लेफ्ट की सरकार जो विकास केंद्रित बात ज्यादा करती है, थरूर का बेहतर उपयोग कर सकती है। इसके ऊपर उनके अनुभव को देखते हुए एलडीए उनको कोई बड़ी भूमिका भी दे सकती है। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि शशि थरूर शहरी वोटरों में ज्यादा लोकप्रिय हैं, ऐसे में अगर वो लेफ्ट के साथ जाते हैं, उनका पहले से मजबूत जनाधार और भी ज्यादा मजबूत हो जाएगा।
केरल में भाजपा को अपना विस्तार करना है, इस बात में कोई दो राय नहीं है, पार्टी यहां पर कई दशकों से संघर्ष करती आ रही है, यह भी एक सच्चाई है। लेकिन क्या शशि थरूर हिंदुत्व विचारधारा वाली पार्टी के साथ जाना चाहेंगे। एक बार को तो यह मुश्किल लगता है। असल में केवल पीएम मोदी की तारीफ करने से ये निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि थरूर बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि थरूर पहले भी कई मौकों पर दलगत की राजनीति से ऊपर उठकर बयान दे चुके हैं। ऐसे में सिर्फ एक तारीफ को पाला बदलने के नजरिए से नहीं देखा जा सकता।
फिलहाल जिस हिंदुत्व की पिच पर बीजेपी खेल रही है, वह शशि थरूर की राजनीति से इतर है, ऐसे में उनका बीजेपी के साथ जाना काफी मुश्किल है। ये अलग बात है कि एक वक्त पर ज्योतिरादित्य सिंधिया, हिमंता बिस्वा सरमा, आरपीएन सिंह, जितेन प्रसाद जैसे नेता भी कांग्रेस के सबसे बड़े वफादार थे, लेकिन समय बदलने के साथ और जरूरत के हिसाब से उन्होंने भगवा पार्टी का दामन थामा। लेकिन शशि थरूर का फिलहाल भाजपा में जाना काफी मुश्किल दिखाई दे रहा है। लेकिन अगर वो ऐसा करते हैं तो ये भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है।
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अब अगर वो भाजपा में नहीं जाते हैं तथा लेफ्ट से भी दूरी बना लेते हैं, ऐसी स्थिति में उनको केरल कांग्रेस में खुद के लिए बड़ी भूमिका तलाशनी पड़ेगी। अभी तक तो वो केवल एक सांसद तक सीमित रह चुके हैं। उन्होंने राहुल गांधी के सामने जरूर पूछा था कि उनकी क्या भूमिका होगी, लेकिन बताया जा रहा है कि राहुल ने सिर्फ इतना ही कहा कि कांग्रेस की परंपरा नहीं कि वो चुनाव से पहले कही अपना चेहरा घोषित करे। ये बताने के लिए काफी है कि कांग्रेस में रहते हुए केरल की मुख्यमंत्री की कुर्सी तो शशि थरूर से दूर ही दिख रही है।