विशेष सत्र पर विपक्ष में मतभेद
नई दिल्ली: भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और अंतरराष्ट्रीय बयानबाजियों पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की कांग्रेस की मांग अब खुद विपक्ष के भीतर विवाद का कारण बन गई है। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हुए विशेष सत्र की मांग को विपक्ष की सर्वसम्मत मांग बताया, लेकिन इसका समर्थन उसके सहयोगी ही पूरी तरह नहीं कर रहे। कई दलों ने इससे किनारा कर लिया है तो कुछ ने चुप्पी साध ली है। ऐसे में यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या विपक्ष वास्तव में इस गंभीर मुद्दे पर एकजुट है या यह मामला सियासी मजबूरियों और क्षेत्रीय रणनीतियों में उलझ गया है।
इस मुद्दे ने विपक्षी एकता की असल तस्वीर सामने ला दी है। जहां एक ओर कुछ दल अपने राजनीतिक हितों को साधने में लगे हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ पार्टियां सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाने से कतरा रही हैं। क्षेत्रीय समीकरणों और आगामी चुनावों को देखते हुए पार्टियों की प्रतिक्रिया अलग-अलग है, जिससे यह साफ है कि विशेष सत्र पर एक समान विपक्ष की बात सिर्फ एक कल्पना रह गई है। विशेष सत्र की मांग ने विपक्षी एकता की परतें खोल दी हैं। एक ओर जहां कांग्रेस इस मुद्दे को सरकार पर दबाव बनाने का हथियार बनाना चाहती है, वहीं उसके सहयोगी दल अपने-अपने राज्यों की सियासी हकीकत के हिसाब से प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ऐसे में विपक्ष की कथित एकजुटता फिलहाल सवालों के घेरे में है।
कांग्रेस की पहल पर छिड़ा नया राजनीतिक संग्राम
भारत-पाकिस्तान के हालात और अमेरिकी हस्तक्षेप के दावों को लेकर कांग्रेस ने संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। इस संबंध में दोनों सदनों के विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। कांग्रेस का कहना है कि यह पूरे विपक्ष की मांग है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं दिख रहा। बिहार में कांग्रेस के सहयोगी दल ने जरूर समर्थन किया है, पर महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में स्थिति उलझी हुई है।
महाराष्ट्र और उत्तर भारत में मतभेद की लहर
महाराष्ट्र में कांग्रेस के दोनों प्रमुख सहयोगियों की राय मेल नहीं खा रही। एक ओर शरद पवार इसे संवेदनशील मामला बताते हुए सर्वदलीय बैठक की बात करते हैं, वहीं शिवसेना (उद्धव गुट) ने खासा आक्रामक रुख अपनाया है। हालांकि उसी पार्टी के अंदर भी इस पर मतभेद हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी चुप है और इसे विदेश नीति का मामला बताकर सीधे बयान देने से बच रही है। पार्टी को डर है कि राज्य स्तर पर यह रुख नुकसानदेह साबित हो सकता है।
बंगाल में टीएमसी की अलग राह
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी टीएमसी अब तक इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं ले पाई है। पार्टी की नेता ने अब तक न कोई बयान दिया है और न ही सोशल मीडिया पर कुछ कहा है। उनका कहना है कि इस तरह के मुद्दों पर केंद्र के साथ खड़ा होना सही होगा। यह पार्टी की पुरानी नीति का ही हिस्सा है जिसमें वह खुद को कांग्रेस से अलग और स्वतंत्र दिखाने की कोशिश करती रही है।