सचिन पायटन फोटो क्रेडिट: बीबीसी
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में जन्मे सचिन पायलट ने जब राजनीति में कदम रखा तो सीढ़ियां चढ़ते चले गए। मानों सियासत में उनके लिए उपलब्धियां पहले से सजा कर रखा गया हो। उनकी लोकप्रियता इतनी तेजी से बढ़ रही थी कि पार्टी के दिग्गज नेताओं की कुर्सियां खतरे में पड़ गई थी। सचिन पायलट को कंट्रोल करने के लिए सोनिया गांधी तक को चालें चलनी पड़ीं। पायलट के सियासी सफर को जानने से पहले आइये उनके शुरुआती जीवन के बारे में जान लेते हैं।
सचिन पायलट का जन्म उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में 7 सितंबर 1977 को हुआ था। इस बार सचिन पायलट अपना 47 वां जन्मदिन मना रहे हैं। पायलट वर्तमान में राजस्थान के टोंक विधानसभा से विधायक हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्ली में एयर फोर्स बाल भारती स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़ाई की और फिर अमेरिका के पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी से प्रंबधन में उच्च शिक्षा प्राप्त की।
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सचिन पायलट के लिए सियासत का क्षेत्र कोई अजनबी जगह यानी नई जगह नहीं थी। भारतीय राजनीति में उनके पिता राजेश पायलट का बड़ा नाम था। वहीं उनकी मां रमा पायलट भी विधायक और सांसद रहीं। 11 जून 2000 में एक सड़क हादसे में पिता राजेश पायलट की मौत के बाद 23 साल के युवा सचिन पायट के लाइफ की दिशा बदली।
सचिन पायलट ने साल 2002 में कांग्रेस का हाथ थामा। सक्रिय रूप से 2003 में कांग्रेस का दामन थामने के साथ ही, अगले ही साल 2004 में वे राजस्थान के दौसा लोकसभा सीट से सांसद बन गए। उस वक्त उनकी उम्र महज 26 वर्ष थी। जिन उपलब्धियों के लिए नेताओं को सालों इंतजार करना पड़ता है। उन्होंने उन उपलब्धियों को छोटी सी ही उम्र में हासिल कर लिया।
सचिन 32 साल की उम्र में केंद्रीय मंत्री बन गए। साथ ही 36 साल की उम्र में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष। 2018 राजस्थान विधानसभा चुनाव में सफलता के बाद उन्हें प्रदेश में उप-मुख्यमंत्री का पद दिया गया।
सचिन पायलट अपने प्रखर राजनीति करियर में तेजी से लोकप्रिय हुए। वहीं पार्टी के दिग्गज नेताओं की लोकप्रियता सचिन के आगे दिन ब दिन कम होती जा रही थी। सचिन पायलट को राहुल गांधी का फुल सपोर्ट था वे चाहते थे कि सचिन पायलट ही राजस्थान के मुख्यमंत्री बने।
दिग्गज नेताओं का पार्टी में कद छोटा होते देख सोनिया गांधी ने सिचुएशन काे संभाला। हालांकि उसके लिए उन्हें काफी चालें चलनी पड़ी। फिर इसके बाद प्रदेश की कमान अशोक गहलोत को सौंपी दी गई और पायलट को उप मुख्यमंत्री पद से ही संतोष करना पड़ा।
सचिन पायलट बचपन से भारतीय वायुसेना के विमानों को उड़ाने का ख्वाब देखते आए थे। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जब मुझे पता चला कि मेरी आंखों की रोशनी कमजोर है तो मेरा दिल टूट गया। क्योंकि मैं बड़ा होकर अपने पिता की तरह एयरफोर्स पायलट बनना चाहता था। वे इंटरव्यू में बताते है कि स्कूल में बच्चे मुझे मेरे पायलट सरनेम को लेकर चिढ़ाया करते थे। तो मैंने अपनी मां को बताए बिना हवाई जहाज उड़ाने का लाइसेंस ले लिया।
सचिन के पायलट बनने का जब सपना चकना चूर हुआ तो उन्होंने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभालना शुरू किया तो उन्होंने अपने पिता के अंदाज में खुद ही गाड़ी चलाकर गांव-गांव घूमना शुरू किया। यहीं से उनकी लोगों के बीच पैठ बननी शुरू हुई और वे लोकप्रिय होते चले गए।
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सचिन पायलट के लिए ये सब कुछ इतना भी आसान नहीं था। उन्हें आलोचना झेलनी पड़ी। कांग्रेस में शामिल होने के बाद सचिन पायलट को डाइनैस्टिक लीडर होने यानी वंशवाद के कारण राजनीतिक लाभ मिलने जैसी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। सचिन पायलट ने एक इंटरव्यू में कहा था कि राजनीति कोई सोने का कटोरा नहीं है जिसे कोई आगे बढ़ा देगा। इस क्षेत्र में आपको अपनी जगह खुद बनानी होती है।