मोहन भागवत और पीएम मोदी (File Photo)
नागपुर/ नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अब अपनी राजनीतिक शाखा बीजेपी को नियमित तौर पर प्रचारक देने के मूड में नहीं है। अब न ही संघ भाजपा के मामलों में सीधा दखल देगा। हालांकि, सहयोग जारी रहेगा। मौजूदा वक्त में भाजपा में संगठन मंत्री के तौर पर काम कर रहे प्रचारक यथावत काम करते रहेंगे तथा अपवादस्वरूप एकाध प्रचारक पार्टी के लिए भेजे भी जा सकते हैं।
समाचार पत्र पत्रिका में छपी खबर के अनुसार, इस नई व्यवस्था का कारण दोनों संगठनों के बीच रिश्ते बिगड़ने की स्थिति नहीं है, बल्कि बीजेपी की संघ के सीधे नियंत्रण से दूर होने की मंशा है। साथ ही संघ अपने कार्य विस्तार पर ज्यादा ध्यान देना है। दोनों ने अपना दायरा तय कर लिया है।
बीजेपी में संगठन मंत्री के तौर पर मूलत: संघ के प्रचारक काम करते हैं। ये व्यवस्था जनसंघ के वक्त से ही चली आ रही है। संघ की चिंता दो स्तर पर है। एक तो जब से बीजेपी सत्ता में आई है तब से संघ का मत बना है कि उसके प्रचारक संगठनात्मक कार्यों की जगह राजनीति में ज्यादा उलझ गए हैं। निचले और मध्यम स्तर पर यह ज्यादा हुआ है।
दूसरी तरफ संघ का पिछले सालों में काम बढ़ा है। इसका विस्तार राजनीतिक क्षेत्र के साथ ही दूसरे क्षेत्रों में भी हुआ है। संघ को लगता है कि शताब्दी वर्ष में केवल राजनीतिक क्षेत्र में काम करने के बजाय अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान दें। साथ ही नए प्रचारकों की संख्या कम होने से भी समस्या बढ़ी है। ऐसी स्थिति में संघ ने बीजेपी को प्रचारक नहीं देने और उसके कामकाज में सीधे दखल के बजाए सहयोग देने की रणनीति तय की है।
बीजेपी को मिल गया नड्डा का उत्तराधिकारी, खिसक जाएगी तेजस्वी और अखिलेश की सियासी जमीन, कब होगा ऐलान?
खबरों के अनुसार बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले संघ के सीधे प्रभाव से मुक्त होने का प्रयास किया लेकिन चुनाव परिणाम ने उसे झटका दे दिया। संघ और बीजेपी के थिंक टैंक मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मजबूत छवि का चुनाव में विपक्षी दलों के पास कोई तोड़ नहीं था।