
अटल बिहारी वाजपेयी (तस्वीर- AI जनरेटेड)
Birth Anniversary Special: 25 दिसंबर को देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती मनाई जाएगी। भारतीय राजनीति के ‘अजातशत्रु’ कहे जाने वाले अटल जी का जन्मदिन पूरा देश ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाता है। यह अवसर न केवल एक महान राजनेता को याद करने का है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में उनके द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों और मूल्यों को फिर से जीने का भी दिन है। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व आज भी करोड़ों देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
सुशासन दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य देश के नागरिकों को सरकार की जवाबदेही और प्रशासन में पारदर्शिता के प्रति जागरूक करना है। साल 2014 में भारत सरकार ने अटल जी के जन्मदिन को इस दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। अटल बिहारी वाजपेयी का मानना था कि लोकतंत्र की असली सफलता तभी है जब सरकारी योजनाओं का लाभ कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। यह दिन प्रशासन को जनता के प्रति अधिक संवेदनशील, पारदर्शी और जिम्मेदार बनाने के संकल्प को दोहराने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
अटल बिहारी वाजपेयी को आधुनिक भारत के निर्माण में उनके दूरदर्शी फैसलों के लिए याद किया जाता है। उन्होंने अपने कार्यकाल में देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए जो कदम उठाए, वे आज भी विकास की धुरी बने हुए हैं। उनकी सबसे महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक ‘स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना’ थी, जिसने देश के चार प्रमुख महानगरों को सड़कों के जाल से जोड़ दिया। इसके अलावा, ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ ने भारत के गांवों की तस्वीर बदल दी। उनका मानना था कि कनेक्टिविटी ही समृद्धि का रास्ता है, और इसी सोच ने भारत के आर्थिक विकास को नई गति प्रदान की।
अटल बिहारी वाजपेयी (तस्वीर- AI जनरेटेड)
उन्होंने न केवल सड़कों का निर्माण किया, बल्कि दूरसंचार क्रांति की नींव भी रखी। आज अगर भारत डिजिटल दुनिया में एक बड़ी ताकत है, तो इसका श्रेय काफी हद तक अटल जी की नीतियों को जाता है। उन्होंने विज्ञान और तकनीक के महत्व को समझा और ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे में ‘जय विज्ञान’ जोड़कर देश को एक नई दिशा दिखाई। परमाणु परीक्षण (पोखरण-2) करके उन्होंने दुनिया को भारत की शक्ति का एहसास कराया, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि भारत हमेशा शांति का पक्षधर बना रहे। उनका शासनकाल कड़े फैसलों और नरम व्यवहार का एक अद्भुत संतुलन था।
अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीति का सबसे बड़ा हथियार उनका संवाद और सबको साथ लेकर चलने की कला थी। वे भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गठबंधन सरकार को न केवल सफलता से चलाया, बल्कि स्थिरता भी प्रदान की। वे विपक्ष के विचारों का भी उतना ही सम्मान करते थे जितना अपने सहयोगियों का। उनकी भाषण शैली और कविताएं आज भी संसद के गलियारों से लेकर आम जनमानस के बीच गूंजती हैं। उनकी कविता ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा’ हर मुश्किल समय में देशवासियों को लड़ने का हौसला देती है।
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सुशासन दिवस पर हमें उनके इन्हीं विचारों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। उनका मानना था कि सत्ता का अंतिम लक्ष्य जनसेवा होना चाहिए। भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन और त्वरित निर्णय क्षमता उनके सुशासन मॉडल के प्रमुख स्तंभ थे। आज जब हम उनकी 101वीं जयंती मना रहे हैं, तो यह दिन सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि एक विचार है। यह दिन याद दिलाता है कि राजनीति में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए और राष्ट्रहित हमेशा सर्वोपरि रहना चाहिए।






