अहिल्याबाई होलकर (सोर्स: सोशल मीडिया)
मालवा की महारानी देवी अहिल्याबाई होलकर को न्याय की प्रतिमूर्ति माना जाता हैं। अहिल्याबाई के शासनकाल में प्रजा सुख और शान्ति तथा समृद्धि से खुशहाल थी। उन्होंने हमेशा अपने राज्य और अपने लोगों को आगे बढ़ने का हौंसला दिया। आज यानी 31 मई को उनकी की जयंती है। आइए जानते है उनके ऐसे निर्णय के बारे में जिसने उन्हें न्याय देवी बना दिया…
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अहिल्याबाई होलकर न्याय की ऐसी प्रतिमूर्ति है कि उन्होंने अपने बेटे को भी मृत्युदंड देने में संकोच नहीं किया। जैसे ही उन्हें एक घटना के बारे में पता चला, उन्होंने अपने बेटे के हाथ-पैर बांधकर रथ के नीचे कुचलने का आदेश दिया। लेकिन जब कोई सारथी रथ चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो महारानी अहिल्याबाई खुद सारथी बन गईं और रथ पर सवार हो गईं। इसके बाद जो हुआ, उसे जानकर आपकी आंखें नम हो जाएंगी…
एक बार अहिल्याबाई के बेटे मालोजी राव अपने रथ पर सवार होकर राजवाड़ा के पास से गुजर रहे थे। उसी समय सड़क के किनारे एक गाय का छोटा बछड़ा भी खड़ा था। जैसे ही मालोजी राव का रथ वहां से गुजरा, अचानक उछलता हुआ बछड़ा रथ के नीचे आ गया और बुरी तरह घायल हो गया। थोड़ी देर बाद वहीं तड़प-तड़प कर मर गया। इस घटना को नजरअंदाज करते हुए मालोजी राव आगे बढ़ गए। इसके बाद गाय अपने बछड़े की मौत पर वहीं बैठ गई। वह अपने बछड़े को छोड़ नहीं रही थी।
इस घटना के कुछ देर बाद अहिल्याबाई भी वहां से गुजर रही थीं। तभी उन्होंने बछड़े के पास बैठी एक गाय को देखा तो वे रुक गईं। वहां मौजूद लोगों ने उन्हें बछड़े के मरने की बात तो बताई लेकिन लेकिन कोई भी यह बताने को तैयार नहीं था कि मौत कैसे हुई। आखिर में किसी ने डरते हुए उन्हें बताया कि बछड़ा मालोजी राव के रथ से टकराकर मर गया।
इस घटना को जानने के बाद अहिल्या ने मालोजी की पत्नी मेनाबाई को दरबार में बुलाया और पूछा कि अगर कोई व्यक्ति किसी की मां के सामने उसके बेटे मार दे तो उसे क्या सजा दी जानी चाहिए? मेनाबाई ने तुरंत जवाब दिया कि उसे मृत्युदंड दिया जाना चाहिए।
इसके बाद महारानी अहिल्याबाई होलकर ने आदेश दिया कि उनके बेटे मालोजी राव के हाथ-पैर बांध दिए जाएं और उसे उसी तरह रथ से कुचलकर मृत्युदंड दिया जाए जिस तरह गाय के बछड़े की मौत हुई थी।
इस आदेश के बाद कोई भी उस रथ का सारथी बनने को तैयार नहीं हुआ। जब उस रथ की लगाम कोई नहीं संभाल रहा था, तब अहिल्याबाई स्वयं रथ पर आकर बैठ गईं। जब वे रथ को आगे बढ़ा रही थीं, तब एक ऐसी घटना घटी, जिसने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। वही गाय रथ के सामने आकर खड़ी हो गई।
अहिल्याबाई के आदेश के बाद जब उस गाय को हटाया गया, तो वह बार-बार रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती। दरबार के मंत्रियों ने रानी से निवेदन किया कि यह गाय भी नहीं चाहती कि ऐसी घटना किसी और मां के बेटे के साथ घटे। इसलिए यह गाय भी दया की मांग कर रही है। गाय अपनी जगह पर ही रही और रथ वहीं अटका रहा। राजबाड़ा के पास जिस स्थान पर यह घटना हुई, उसे आज सभी लोग ‘आड़ा बाजार’ के नाम से जानते हैं।