इंदिरा गांधी, फोटो - एक्स
नई दिल्ली : आज ही के दिन ठीक 54 साल पहले स्टेट, बैंक 11 संसद मार्ग, नई दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आवाज की नकल करते हुए एक ऐसे बैंक घोटाले को अंजाम दिया गया जिसने देश को हिलाकर रख दिया था।
साल 1971, मई की 24 तारीख और सोमवार का दिन। दिल्ली के 11 संसद मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की ब्रांच में एक फोन कॉल आया और उसी के साथ शुरू हुआ एक ऐसा बैंक घोटाला, जिसकी गूंज आज भी समय-समय पर सियासी और नौकरशाही गलियारों में गूंजती है। इस घटना को “नागरवाला कांड” के नाम से जाना जाता है।
यह घटना सुबह लगभग 11:45 बजे की है। वेद प्रकाश मल्होत्रा, जो कि स्टेट बैंक के हेड कैशियर थे और 26 वर्षों से सेवा में थे, अपनी कुर्सी पर बैठे थे जब बैंक के फोन की घंटी बजी। दूसरी ओर से आवाज आई, “भारत की प्रधानमंत्री के सचिव श्री हक्सर आपसे बात करना चाहते हैं।”
मल्होत्रा जैसे ही फोन पर आए, खुद को ‘हक्सर’ बताने वाले व्यक्ति ने कहा कि प्रधानमंत्री को 60 लाख रुपये की तत्काल जरूरत है, जो एक गोपनीय मिशन के लिए बांग्लादेश भेजे जाने हैं। जब मल्होत्रा ने पूछा कि क्या यह पैसे किसी चेक या रसीद के बदले में दिए जाएंगे, तो जवाब मिला, “यह एक बेहद गोपनीय काम है, प्रधानमंत्री का आदेश है। रसीद बाद में दी जाएगी।”
जब मल्होत्रा संशय में पड़े तो दूसरी ओर से फिर आवाज आई, तो आप सीधे प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से बात करें। अगली ही पल एक जानी-पहचानी आवाज आई. “मैं भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बोल रही हूं।” मल्होत्रा को लगा मानो उनके कानों में कोई जादू उतर गया हो। इंदिरा गांधी की आवाज में अधिकार और भरोसा था, और उन्होंने दोहराया कि ये राशि बांग्लादेश के एक विशेष ऑपरेशन के लिए है।
मल्होत्रा असमंजस में थे कि वह पैसे देने वाले व्यक्ति को कैसे पहचानेंगे। उन्हें बताया गया कि वो व्यक्ति उनसे कोड वर्ड में कहेगा कि मैं बांग्लादेश का बाबू हूं और मल्होत्रा को भी कोड वर्ड में ही जवाब देना था – “मैं बार एट लॉ हूं।”
मल्होत्रा ने बैंक के दो जूनियर कैशियर के साथ मिलकर स्ट्रॉन्ग रूम से पैसे निकाले। राशि को एम्बेसेडर कार के ट्रंक में रखा गया और बताई गई जगह फ्री चर्च के पास पहुंचा दिया गया। वहां एक लंबा-चौड़ा गोरा व्यक्ति हरे रंग की हैट पहने उनकी ओर आया और कोड वर्ड का इस्तेमाल किया। इसके बाद वह व्यक्ति मल्होत्रा को पंचशील मार्ग के पास छोड़कर खुद टैक्सी में हवाई अड्डे की ओर रवाना हो गया।
इस पूरी योजना को अंजाम देने वाला व्यक्ति था रुस्तम सोहराब नागरवाला, जो कि सेवानिवृत्त सेना अधिकारी था। जैसे ही घोटाले की भनक लगी, चाणक्यपुरी थाने में एफआईआर दर्ज हुई और पुलिस ने तेजी से कार्रवाई करते हुए नागरवाला को दिल्ली एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया। उसके पास से अधिकांश रकम भी बरामद कर ली गई।
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नागरवाला को अदालत ने चार साल की सजा सुनाई, लेकिन जल्द ही तिहाड़ जेल में उसकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हो गई। यही नहीं, इस मामले की जांच कर रहे अधिकारी डीके कश्यप की भी रहस्यमयी मौत हो गई, जिससे यह मामला और भी पेचीदा और विवादित बन गया।