
रील्स देखने के प्रभाव (सौ. फ्रीपिक)
How Reels Affect Your Brain: सुबह उठने से लेकर रात तक हम हर सेकंड एक नई रील स्वाइप करते रहते हैं। यह आदत हमारे दिनचर्या का हिस्सा बन गई है। जहां कुछ सेकेंड का वीडियो हमें हंसाता, रुलाता या सिखाता है और तेजी से हमारा ध्यान उलझा देता है। लगातार स्क्रॉल करना सिर्फ एक आदत नहीं बल्कि यह दिमाग को प्रभावित करती है। इसे डूम स्क्रॉलिंग या ब्रेन रोट कहा जाता है। आइए, जानते हैं क्या रिल्स वाकई में हमारे दिमाग को स्लो कर रही है?
रील्स देखने तुरंत खुशी देने वाले प्रिंसिपल पर काम करती है। हर स्वाइप एक नया वीडियो दिमाग में डोपामाइन रिलीज करता है। यह पैटर्न किसी चीज की लत की तरह देखा जा सकता है। इसकी वजह से दिमाग तेज और उत्तेजनाओं से भरे वातावरण का आदि हो जाता है। इससे व्यक्ति बेचेन और इंपल्सिव होने लगता है। रील्स देखने की आदत की वजह से याददाश्त पर असर पड़ता है। क्योंकि दिमाग कुछ सेकंड बाद फोकस बदलने लगता है।
रील्स देखने की लत का सबसे बड़ा साइलेंट विक्टिम नींद है। आजकल लोग देर रात तक रील्स स्क्रोल करते रहते हैं। जिससे नींद की गुणवत्ता गिरती है और अलग दिन सुबह उठने के बाद भी चिड़चिड़ी और थकान रहती है। इसके अलावा दिमाग कम फोकस कर पाता है। लगातार रील्स को घंटो स्क्रॉल करना डूम स्क्रॉलिंग कहा जाता है। ऐसा करने से सिर्फ समय बर्बाद नहीं होता है बल्कि यह दिमाग पर गहरा असर डालता है।

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हालांकि रील्स देखना बुरी आदत नहीं है लेकिन इसकी अधिकता आपके दिमाग को ओवर स्टिमुलेट कर सकती है। जिससे ध्यान, फैसले लेने की क्षमता में कमी आती है। साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। सही बाउंड्री सेट करके और स्क्रीन टाइम को कंट्रोल करके आप ब्रेन रॉट जैसी समस्या से खुद को बचा सकते हैं।
लगातार 30 सेकंड के वीडियो देखने से फोकस कम होता है और सेल्फ कंट्रोल की क्षमता कमजोर होती है। इसके अलावा यह स्ट्रेस और एंजाइटी बढ़ाता है। शॉर्ट वीडियो या रील्स की लत दिमाग के ग्रे मैटर तक को प्रभावित कर सकती है। इससे व्यक्ति के अंदर ईर्ष्या बढ़ना, परिणामों को नजरअंदाज करना और जानकारी को धीमी गति से प्रोसेस करना आदि समस्याएं देखने को मिल सकती हैं।






