मुंबई: अनुपम खेर की फिल्म ‘विजय 69’ नेटफ्लिक्स पर प्रीमियर हो चुकी है। फिल्म की कहानी बेहद दिलचस्प है और इस फिल्म में अनुपम खेर ने अपने किरदार और अपनी एक्टिंग से यह बताया है कि बूढ़ा होने का मतलब यह नहीं होता कि उस शख्स की जिंदगी खत्म हो गई है। “बूढ़ा होने का मतलब सिर्फ अखबार पढ़ना चाहिए ,वॉक पर जाना चाहिए, दवा खानी चाहिए और एक दिन मर जाना चाहिए, ऐसा बिल्कुल नहीं होता।” एक बुजुर्ग इंसान को भी अपने लिए और अपने परिवार के लिए सपने देखने का पूरा अधिकार है, रिटायरमेंट के बाद उसकी जिंदगी बदल नहीं जाती जबकि उसे बदलने पर मजबूर किया जाता है।
फिल्म की कहानी: दिल को छू लेने वाली कहानी है। इसमें 69 साल के ‘विजय मैथ्यू’ (अनुपम खेर) की कहानी को दिखाया गया है। जब एक रात वह अपने घर वापस नहीं आते तो उनके यार दोस्त पड़ोसी और परिवार के लोग यह मान लेते हैं कि वह मर चुके हैं। जिसके बाद उनके लिए कॉफिन गवाया जाता है। उनके अंतिम संस्कार की तैयारी पूरी हो जाती है। लेकिन इसी बीच वह वापस आ जाते हैं और उसके बाद शुरू होती है फिल्म की असली कहानी। दरअसल विजय मैथ्यू को एक तैराक दिखाया गया है, जो नेशनल लेवल पर स्विमिंग में ब्रॉन्ज मेडल भी जीत चुका है। लेकिन पत्नी की कैंसर की बीमारी और बेटी को पालने के लिए उसे एक क्लब में स्विमिंग कोच बनने के लिए मजबूर होना पड़ता है और उसके सपने वही धरे के धरे रह जाते हैं।
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क्या अपना सपना पूरा कर पाएगा विजय मैथ्यू
जब बेटी बड़ी हो जाती है तो विजय को अपना पुराना सपना याद आता है। वह ट्रायथलॉन का हिस्सा बनना चाहता है। जिसके लिए विजय को डेढ़ किलोमीटर की तैराकी करनी है, करीब 40 किलोमीटर तक साइकिल चलाना है और 10 किलोमीटर तक दौड़ लगानी है। विजय की स्थिति पर उनका परिवार और दोस्त सभी विजय का मजाक उड़ाने लगते हैं। ट्रायथलॉन के कड़े प्रशिक्षण के बाद उनका एप्लीकेशन भी खारिज हो जाता है, तो क्या विजय अपने सपने को पूरा कर पाएगा, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखना होगा।
लेकिन फिल्म की कहानी बेहद दिलचस्प है यह कहा जा सकता है। इस फिल्म में अनुपम खेर के साथ-साथ चंकी पांडे, बृजेश हीरजी, मिहिर आहूजा जैसे कलाकार भी नजर आ रहे हैं। सभी ने बेहतरीन काम किया है। अनुपम खेर की एक्टिंग की अगर बात की जाए तो उन्होंने पिछले सभी किरदारों से इस किरदार में बेहतर प्रदर्शन किया है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक बेहद अच्छा है। सिनेमैटोग्राफी भी अच्छी है। एडिटिंग में थोड़ा सुधार करके फिल्म को और रोचक बनाया जा सकता था। फिर भी जिन्हें यह लगता है कि रिटायरमेंट के बाद इंसान को सिर्फ आराम करना चाहिए यह फिल्म उनके लिए देखने लायक है और जिन्हें ऐसा नहीं लगता है यह फिल्म उनके लिए भी देखने के लायक है।