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मुंबई: भारत की सियासत में चाचा बनाम भतीजे की तनातनी नई नहीं है। लेकिन महाराष्ट्र में इस जंग ने एक अलग ही मुकाम हासिल किया है। यहां चाचा-भतीजे की जंग के इतने उदाहरण हैं जितने किसी भी एक राज्य में न हुए हैं और न ही होने के आसार हैं। इस बार भी महाराष्ट्र चुनाव में कई जगहों पर चाचा-भतीजे की जंग होने वाली है।
राष्ट्रीय राजनीति हो या महाराष्ट्र की राजनीति, चाचा की उंगली पकड़कर राजनीति के गुर सीखने के बाद राजनीति में अपने ही चाचा से बगावत और चुनौती की कहानी कोई नई बात नहीं है। भारतीय राजनीति का इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब चाचा भतीजे पर भारी पड़े तो कभी भतीजे ने चाचा पर। चाहे यूपी में 2017 के चुनाव के दौरान अखिलेश-शिवपाल का मामला हो या बिहार में पशुपति पारस और चिराग पासवान का।
सियासत, साम्राज्य और सत्ता के खेल में पारिवारिक रिश्ते और व्यवहार तार-तार होते रहते हैं। महाराष्ट्र में चाचा-भतीजे के बीच यह पहली लड़ाई नहीं है। ऐसा पहले भी हो चुका है। अभी भी हो रहा है और जिस तरह से यहां का राजनीतिक परिदृश्य है, भविष्य में भी ऐसा ही होने वाला है। तो आइए जानते हैं महाराष्ट्र की राजनीति में चाचा बनाम भतीजे की लड़ाई का अतीत और वर्तमान।
मराठी क्षेत्रवादी और हिंदू अति-राष्ट्रवादी शिवसेना राजनीतिक पार्टी की स्थापना बाल ठाकरे ने 1966 में महाराष्ट्र में की थी। पार्टी बनाने के बाद बालासाहेब को अपने भाई श्रीकांत ठाकरे और अगली पीढ़ी के बेटे उद्धव ठाकरे और भतीजे राज ठाकरे का समर्थन मिला। राज ठाकरे ने शिवसेना की छात्र शाखा भारतीय विद्यार्थी सेना शुरू करके अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1990 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान वे चर्चा में आए। 1990 के दशक में राज ठाकरे खुद को अपने चाचा बालासाहेब का उत्तराधिकारी मानते थे। हालांकि बालासाहेब ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को प्राथमिकता दी।
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बालासाहेब ठाकरे के लिए काम करने वाले अन्य नेताओं द्वारा कई वर्षों तक दरकिनार किए जाने के बाद राज ठाकरे ने 27 नवंबर 2005 को शिवसेना से इस्तीफा दे दिया और एक नई राजनीतिक पार्टी शुरू करने के अपने इरादे की घोषणा की। ठाकरे ने बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ विद्रोह किया और 9 मार्च 2006 को मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की स्थापना की। इसके बाद जब 2009 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए तो राज ठाकरे कुछ खास नहीं कर पाए लेकिन शिवसेना-भाजपा गठबंधन के वोट काटकर उसे हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार और अजित पवार के बीच के रिश्ते सबसे ज्यादा चर्चित रहे हैं। शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की स्थापना की। अजित पवार शरद पवार के भतीजे हैं और एनसीपी में एक प्रभावशाली नेता हैं। हालांकि, दोनों के बीच कई बार राजनीतिक मतभेद भी हुए हैं, खासकर तब जब अजित पवार ने महाराष्ट्र में भाजपा के साथ गठबंधन किया और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
इस कदम से शरद पवार के समर्थकों में हलचल मच गई और यह साफ हो गया कि परिवार के भीतर सत्ता संघर्ष गहरा गया है। इसके बावजूद दोनों ने फिर साथ आकर काम किया, जिससे राजनीतिक समीकरणों में नया मोड़ आया। लेकिन कुछ ही दिन बाद एनसीपी फिर से दो दलों में बंट गई। एक एनसीपी जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अजित पवार हैं और दूसरा एनसीपी शरद चंद्र पवार गुट जिसका नेतृत्व शरद पवार कर रहे हैं।
महाराष्ट्र में एनसीपी के कद्दावर नेता छगन भुजबल के बेटे समीर भुजबल ने भी बगावत कर दी है। भतीजे समीर भुजबल ने नांदगांव सीट पर निर्दलीय ताल ठोंक दी है। जिसके बाद छगन ने एक बयान में यह बात भी कही है कि सभी भतीजों का डीएनए एक जैसा होता है।
अजित पवार के भाई श्रीनिवास पवार के बेटे युगेंद्र पवार भी राजनीतिक रूप से चर्चा में हैं। उन्होंने अभी-अभी सक्रिय राजनीति में कदम रखा है, लेकिन पिछले कई सालों से उनकी मौजूदगी राजनीतिक गतिविधियों में देखी जा रही है। राज्य की बारामती विधानसभा सीट के लिए चाचा-भतीजे के बीच जंग होने जा रही है। पुणे जिले की बारामती सीट के लिए शरद पवार ने अजित पवार के खिलाफ युगेंद्र पवार को मैदान में उतारा है।
युगेंद्र शरद पवार के गुट से चुनावी मैदान में होंगे। अजित पवार को उनके दूसरे भतीजे रोहित पवार से भी चुनौती मिल चुकी है। लोकसभा चुनाव में रोहित पवार ने अजित पवार के खिलाफ कड़े बयान दिए थे और अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा को हराने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
उद्धव ठाकरे के उत्तराधिकारी आदित्य ठाकरे हैं, जो एमवीए की उद्धव ठाकरे सरकार में सबसे युवा मंत्री थे। उद्धव ठाकरे शिवसेना यूबीटी प्रमुख और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जबकि उनके बेटे आदित्य ठाकरे युवा नेता और विधायक हैं। लेकिन उनके भतीजे अमित ठाकरे राज ठाकरे के बेटे हैं जो कि सियासत में उतर चुके हैं।
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मनसे की राजनीति भले ही शिवसेना से अलग रही हो, लेकिन अमित ठाकरे के राजनीतिक करियर की तुलना आदित्य ठाकरे से की जाती है। ये दोनों चचेरे भाई एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। अमित ठाकरे मनसे के टिकट पर मुंबई की माहिम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने अमित ठाकरे के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारा है।
राज ठाकरे और आदित्य ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में एक और दिलचस्प चाचा-भतीजे की जोड़ी है। राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होकर मनसे की स्थापना की थी, जिसका असर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना पर भी पड़ा। आपको बता दें कि महाराष्ट्र की सभी 288 सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान है, जबकि नतीजे 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।