श्रीरामपुर विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
अहिल्यानगर: महाराष्ट्र में चुनाव होने है। नामांकन दाखिल हो चुके है। अब प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत को सुनिश्चत करने के लिए जनता के दरबार जाएंगे। 20 नवंबर को सभी प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो जाएगी। 23 नवंबर को नतीजों का दिन होगा। सभी अपने-अपने हिस्से की तैयारियों में जुटा है। ऐसे में हम भी अपने हिस्से की तैयारी कर रहे है और आप तक एक-एक कर सभी 288 विधानसभा सीटों की जानकारी पहुंचा रहे है।
विधानसभा सीट के विश्लेषण की कड़ी में आज बारी है अहमदनगर यानी अहिल्यागनर जिले की श्रीरामपुर विधानसभा सीट की। श्रीरामपुर विधानसभा सीट शिरडी संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यह सीट 1980 में बनी। पहले यह सामान्य सीट थी लेकिन 2008 में हुए परिसीमन के बाद इसे एससी प्रत्याशी के लिए आरक्षित कर दिया गया।
श्रीरामपुर विधानसभा सीट कांग्रेस का अजेय किला है। 1980 में बनी इस सीट पर अब तक 9 विधानसभा चुनाव हुए। जिसमें से 8 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 1990 में केवल एक बार जनता दल के भनुदास मुरकुटे ने इस सीट पर विजय हासिल की थी।
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श्रीरामपुर के इतिहास का विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि यहां से जो भी प्रत्याशी चुन कर आया वह लगातार दो बार चुना गया। 1990 और 1995 में भानुदास मुरकुटे, 1999 और 2004 में जयंत ससाणे और 2009 और 2014 में भाऊसाहेब कांबले ने जीत दर्ज की। 2019 में लहू कानडे ने यहां से अपने जीत का परचम लहराया था, लेकिन कांग्रेस ने इस बार कानडे को टिकट नहीं दिया।
श्रीरामपुर विधानसभा सीट पर कुल 2 लाख 87 हजार 700 मतदाता है। जिनमें से एससी मतदाताओं के संख्या लगभग 51 हजार 467 है जो कुल वोट का 17.92 फीसदी होता है। वहीं एसटी मतदाताओं की संख्या 20 हजार 500 के लगभग है जो 7.14 प्रतिशत होता है। साथ ही 30 हजार 444 मुस्लिम मतदाता है जो 10.6 प्रतिशत होता है।
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श्रीरामपुर विधानसभा सीट पर इस बार लड़ाई दिलचस्प होने वाली है। क्योंकि मौजूद कांग्रेस विधायक को इस बार पार्टी ने अपना प्रत्याशी नहीं बनाया। कांग्रेस ने युवा चेहरे हेमंत ओगले पर दांव लगाया है। लेकिन टिकट कटने से नाराज मौजूदा विधायक लहू कानडे पाला बदलकर उपमुख्यमंत्री अजित पवार की एनसीपी में शामिल हो गए है। अजित गुट ने लहू कानडे को श्रीरामपुर से टिकट देकर कांग्रेस को सकते में डाल दिया है।
पिछले चुनावों के ट्रेंड को देखते हुए लहू कानडे के जीत के चांसेस ज्यादा है। लेकिन दूसरा इतिहास यह भी है कि यहां कांग्रेस के अलावा सिर्फ एक बार ही दूसरी पार्टी जीत पाई है। ऐसे में किसका पलटा भारी होगा यह कहना मुश्किल है।