कोटा (कांसेप्ट फोटो सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: कोटा, जो कभी बच्चों के बड़े सपनों को साकार करने की जगह माना जाता था, अब धीरे-धीरे बच्चों के सपनों को तोड़ने वाली जगह बनता जा रहा है। पढ़ाई के दबाव और मानसिक तनाव के चलते यहां छात्रों की आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
पिछले 24 घंटे में दो मौतें
मध्य प्रदेश के गुना से आए अभिषेक ने मई 2024 में कोटा के एक कोचिंग सेंटर में एडमिशन लिया था। उन्होंने अपने कमरे में पंखे से लटककर जान दे दी। इससे पहले हरियाणा के नीरज भी जेईई की तैयारी कर रहे थे। उन्होंने भी अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।
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डराने वाले हैं आंकड़े
2023 में 25 छात्रों ने अपनी जान दी थी, और 2024 में ये आंकड़ा और बढ़ गया है। कोटा अब “सपनों की जगह” से “सुसाइड हब” के नाम से जाना जाने लगा है।
– पढ़ाई का भारी दबाव
– परिवार की ऊंची उम्मीदें
– अकेलापन और इमोशनल सपोर्ट की कमी
कोचिंग संस्थान और प्रशासन ने काउंसलिंग सेवाएं शुरू की हैं, लेकिन अब भी इन प्रयासों में सुधार की जरूरत है। बता दें कि छात्रों को पढ़ाई के साथ मानसिक शांति और इमोशनल सपोर्ट मिले, तभी यह घटनाएं रुक सकती हैं। कोटा को बच्चों के सपनों का शहर बने रहने के लिए बदलाव जरूरी है।
इसके साथ ही ये भी सच है कि हाल के दशकों में देश के आर्थिक, सामाजिक व अन्य क्षेत्रों में ढांचागत एवं नीतिगत स्तर पर काफी प्रगति हई है। इसके फलस्वरुप देश की विकास दर तेजी से बढ़ी है। इस बढ़ती विकास दर ने अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधारों को गति प्रदान की है, लेकिन इन परिवर्तनों ने हमारी शिक्षा व्यवस्था की मूल समस्याओं को दूर नहीं किया है।