(प्रतीकात्मक तस्वीर)
No-Cost EMI: गणेश चतुर्थी के साथ ही देश में त्योहारी सीजन की शुरुआत हो गई है। दशहरा, धनतेरस और दिवाली के मौके पर जमकर खरीदारी होती है। इन खास मौकों पर भारत में कारोबार करने वाली लगभग सभी कंपनियां अपने सेल को बढ़ाने के लिए ग्राहकों को लुभावने ऑफर देती हैं, ताकि इसके जरिए वे अपनी सेल को बढ़ा सकें। ऑनलाइन शाॉपिंग प्लेटफॉर्म अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां भी ‘बिग बिलियन डे सेल’ और ‘ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल’ के जरिए ग्राहकों को टारगेट करती हैं।
इस दौरान कंपनियों की और से 50% प्रतिशत की डिस्काउंट, No-Cost EMI, बॉय नाउ-पे लेटर (BNPL) और अलग-अलग बैंकों के क्रेडिट और डेबिट कार्ड पर भी ऑफर दिए जाते हैं, ताकि ग्राहक जरूरत के अलावा गैर जरूरी सामानों की खरीदारी करें। लेकिन क्या आपने कभी सोचा की ये डिस्काउंट क्या होते हैं और क्यों दिए जाते हैं। क्या आपको हर बार इससे फायदा मिलता है। आइए इन सभी सवालों को जवाब विस्तार से जानते हैं।
अभी कुछ हफ्तों में ही ई-कॉमर्स कंपनियां की सेल शुरू होने वाली हैं। हालांकि, इस बार फेस्टिवल डिस्काउंट के अलावा सरकार की ओर से जीएसटी रेट कट का फायदा भी ग्राहकों को मिलने वाला है। हालांकि, अभी भारत में कई नए ट्रेंड देखने को मिले है जैसे कि NO-Cost EMI, प्रोडक्ट बंडलिंग और डिस्काउंट।
यह एक ऐसे पेमेंट सुविधा है, जिसमें खरीदार किसी भी उत्पाद की परूी कीमत एक साथ चुकाने के बजाय उसे छोटी-छोटी आसान किश्तों में बांट सकते हैं, जो अक्स हर महीने में दी जाती और सेलर इसे ‘ब्याज मुक्त’ बताता है। आसान भाषा में आप इसे ऐसे समझ सकते हैं। मान लीजिए आप एक 60,000 रुपये की मोबाइल फोन खरीदते हैं, लेकिन यह पैसे एक बार में न चुका कर इसको 12 किश्तों में 5-5 हजार कर आप जमा कर सकते हैं। हालांकि, किश्तों पर कोई एक्स्ट्रा चार्ज या ब्याज नहीं देना होगा।
लेकिन, असली खेल यही शुरू होता है। द मिंट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नो कॉस्ट ईएमआई एक तरह से भ्रामक है। इस सुविधा के तहत खरीदार को सीधे तौर पर ब्याज नहीं देना होता, कई बार ब्याज की पहलु को छुपाकर प्रोसेसिंग फीस या एमआरपी पर एडजस्ट करके ग्राहक से वसूल लिया जाता है। बैंक कुछ मामलो में जो प्रोसेसिंग फीस लगाते हैं वह 1 से 3 प्रतिशत तक हो सकती है।
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एथेना क्रेडएक्सपर्ट के फाउंडर सतीश मेहता का कहना है कि मुफ्त ईएमआई जैसी कोई चीज नहीं होती। कोई न कोई इसका खर्च उठाता ही है। ये खर्च या तो प्रोडक्ट मैन्युफैक्चरर्स, रिटेलर या कस्टमर उठाते हैं। हालांकि, कुछ ऐसे भी उदहारण है जहां कंपनियां खुद खर्च उठाती हैं, जैसे कि डिस्काउंट एडजस्टमेंट।इसमें रिटेलर ब्याज के बराबर ग्राहकों को छूट देता है और वह बैंक को अपनी तरफ से ब्याज का अमाउंट चुकाता है।