प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: आज के समय में लोन लेना बड़ा ही आसान हो गया है क्योंकि इस के लिए आपके पास कई विकल्प मौजूद है। कई बार जब बैंक लोन देने से इंकार कर दे तो लोग NBFC का रूख करते हैं। यहां बिना किसी समस्या का आसानी से लोन मिल भी जाता है। लेकिन जब लोन चुकाने की बारी आती है तो लोग कई बार डिफॉल्टर हो जाते हैं। नतीजा यह है कि NBFC सेक्टर का NPA आल टाइम हाई पर पहुंच गया है।
दिसंबर 2024 तक के आंकड़ों के मुताबिक, NBFC को करीब 50,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जो अब तक दिए गए लोन का 13 परसेंट है। इसके अलावा कई ऐसे लोन भी हैं, जो अब NPA बनने की कगार पर हैं। इनका आंकड़ा बढ़कर 3.2 परसेंट हो गया है। जबकि एक साल पहले यह सिर्फ 1 परसेंट था। यानी कि इससे साफ है कि भारत में कमजोर आय वर्ग वाले लोगों की लोन चुकाने की क्षमता कम हो रही है।
अब सवाल यह आता है कि लोन डिफॉल्ट में इतनी तेजी क्यों आ रही है? माइक्रोफाइनेंस लोन के लिए अप्लाई करना बेहद आसान है। इसके लिए कम डॉक्यूमेंट्स की जरूरत पड़ती है। इसके चलते लोग आसानी से लोन तो लेते हैं, लेकिन बढ़ती महंगाई के चलते रोजमर्रा की चीजों पर खर्च बढ़ जाने से लोन का पैसा कहीं न कहीं चुकाने से चूक जाते हैं। इसके अलावा, कई लोग ऐसे भी हैं जिनकी कोई स्थिर आय नहीं है ऐसे में ईएमआई भरना इनके लिए काफी मुश्किल साबित हो रहा है।
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NPA का मतलब होता है नॉन परफॉर्मिंग एसेट, जिसका मतलब ऐसे लोन से है जो समय पर वापस नहीं किए जाते हैं। अगर किसी लोन का ईएमआई, प्रिंसिपल या इंटरेस्ट का भुगतान ड्यू डेट के 90 दिनों के भीतर नहीं किया जाता है तो उसे एनपीए में डाल दिया जाता है। हमारे देश में माइक्रोफाइनेंस लोन की मदद ऐसे लोग लेते हैं जिनकी आय कम है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसके लिए गारंटर के तौर पर कुछ रखने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसका मकसद इनकम जेनरेट करना है।