इंफोसिस (सौ . सोशल मीडिया )
नई दिल्ली : देश की दिग्गज आईटी कंपनी इंफोसिस के चेयरमैन और आधार प्रोजक्ट के सूत्रधार रहने वाले नंदन नीलेकणी ने शुक्रवार को बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा है कि भारत अपने ब्रॉड डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर यानी डीपीआई को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस यानी एआई की ताकत से जोड़ने के लिए स्पेशल कंडीशन में है।
कार्नेगी इंडिया की ओर से आयोजित ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट में नीलेकणि ने कहा कि एआई को लेकर चर्चाओं का दौर अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच चुका है लेकिन बड़े पैमाने पर इसे बनाने और संचालित करने में वास्तविक चैलेंजेस मौजूद हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में इस समय विमर्श का सेंटर यह है कि कम लागत पर और जनसंख्या के पैमाने पर जीवन को बेहतर बनाने के लिए एआई का इस्तेमाल किस तरह किया जाए। नीलेकणि ने कहा है कि एआई डीपीआई को बेहतर बनाता है। हमारे पास जो डिजिटल बेसिक स्ट्रक्चर है, उसमें एआई का इस्तेमाल हो रहा है और यह डीपीआई को बेहतर बना रहा है। भारत अपने इतिहास के कारण स्पेशल कंडीशन में होगा और यह डीपीआई और एआई को मिलाकर काम करने का एक नया तरीका तैयार करेगा।
भारत में एआई को लेकर स्ट्रेटेजी व्यक्तिगत उपयोग मामलों पर ध्यान केंद्रित करने और यह सुनिश्चित करने की है कि यह सिक्योर, निष्पक्ष और जिम्मेदार हो। इसके साथ ही नीलेकणि ने सावधान करते हुए कहा कि एआई आसान नहीं है और रातोंरात होने वाला कोई जादू नहीं है। उन्होंने कहा है कि कुछ तो सामान्य मुद्दे हैं। आप यूजर्स एक्सपीरियंस को कैसे सहज बनाते हैं? हमें किस तरह के इंफ्रास्ट्रक्टर की जरूरत है? लेकिन पिछली टेक्नोलॉजी प्रोग्रेस और इसके बीच अंतर यह है कि पहली बार निर्णय लेने के लिए नॉन ह्यूमन इंटेलीजेंस पर भरोसा करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा है कि बड़े पैमाने पर एआई को अपनाना मुश्किल काम है और आगे भी ऐसा ही होता रहेगा। उन्होंने कहा कि इससे भी बड़ी चुनौती कंपनियों और पब्लिक सेक्टर में बड़े पैमाने पर एआई को अपनाने की है।
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नीलेकणि ने कहा है कि यदि आप वास्तव में इन सभी एआई पहलुओं पर काम करना चाहते हैं तो बहुत कुछ किया जाना है। और सभी बदलाव आसान नहीं हैं। ऐसा पहले भी हुआ है, इस बार अंतर यह है कि प्रमोशन एक अलग ही स्तर पर है। नीलेकणी ने कहा कि एआई को अपनाना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा है कि यह हमारी सोच से कहीं ज्यादा जटिल काम है।उन्होंने कहा है कि हमें उम्मीद है कि एआई को भारत में अपनाने में 10-15 साल लगेंगे। लेकिन हमें भरोसा है कि भारत में यह बहुत तेजी से हो सकता है।