
तारापुर विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Tarapur Assembly Constituency: बिहार के मुंगेर जिले का तारापुर विधानसभा क्षेत्र (Tarapur Assembly Seat), अपनी समृद्ध इतिहास, संस्कृति और राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण पहचान रखता है। जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा यह सीट, जहाँ 1932 में जलियांवाला बाग के बाद दूसरा सबसे बड़ा ब्रिटिश नरसंहार हुआ था, राजनीतिक दृष्टिकोण से ओबीसी आबादी, खासकर कुशवाहा समुदाय के मजबूत प्रभाव के कारण हमेशा सुर्खियों में रही है।
तारापुर की पहचान दो महत्वपूर्ण, लेकिन विपरीत घटनाओं से जुड़ी है।
1932 का नरसंहार: 15 फरवरी 1932 को झंडा सत्याग्रह के दौरान ब्रिटिश पुलिस की गोलीबारी में 34 स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2022 में इस दिन को ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की, जिससे इस बलिदान को राष्ट्रीय पटल पर पहचान मिली है। यह घोषणा आगामी चुनावों में राष्ट्रवाद और स्थानीय गौरव के रूप में एक मजबूत भावनात्मक मुद्दा बन सकती है।
धार्मिक आस्था: श्रावण मास के दौरान, सुल्तानगंज से देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम तक जाने वाले कांवरियों का प्रमुख रास्ता तारापुर से होकर गुजरता है। तेलडीहा भगवती मंदिर और उल्टा स्थान महादेव मंदिर (पाल वंश द्वारा स्थापित) यहाँ के प्रमुख धार्मिक केंद्र हैं।
1951 में स्थापित इस सीट पर शुरुआती दबदबा कांग्रेस का रहा, लेकिन बाद में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व कायम हुआ।
JDU का प्रभुत्व: इस सीट पर 2010 के बाद से JDU का कब्जा रहा है, जिसने समता पार्टी के रूप में सहित कुल छह बार जीत हासिल की है।
कुशवाहा वर्चस्व: इस क्षेत्र की राजनीतिक विशेषता कुशवाहा समुदाय का प्रभाव है। यहाँ से चुने गए अधिकांश विधायक इसी जाति से रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों गठबंधनों को इस समुदाय के वोटरों को साधना ज़रूरी है।
2021 का उपचुनाव: हाल ही के चुनावों में, JDU और RJD के बीच जीत का अंतर बहुत कम (लगभग 2 से 4 प्रतिशत) रहा है। 2019 के उपचुनाव और 2020 के आम चुनाव दोनों में मुकाबला बेहद कड़ा था।
हिंसा की छाया: 1995 के विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस प्रत्याशी सचिदानंद सिंह की हत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने यहाँ की राजनीति पर लंबे समय तक हिंसा की छाया रखी थी।
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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में, JDU के सामने कुशवाहा समुदाय के एकजुट समर्थन और नीतीश कुमार के विकास के आधार पर अपने डेढ़ दशक के वर्चस्व को बरकरार रखने की चुनौती होगी। वहीं, राजद एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण और स्थानीय मुद्दों को उठाकर इस कड़े मुकाबले वाली सीट को पलटने का प्रयास करेगी।






