
सिवान विधानसभा सीट: बिहार का सियासी केंद्र, पहले राष्ट्रपति की धरती पर BJP-RJD में सीधा मुकाबला
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार का सिवान (Siwan) क्षेत्र भारतीय इतिहास, संस्कृति और आधुनिक राजनीति के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वही गौरवशाली धरती है जिसने देश को उसका पहला राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद दिया। समृद्ध भोजपुरी संस्कृति से सराबोर यह इलाका भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आज की बिहार चुनाव राजनीति तक अपनी गहरी छाप छोड़ चुका है। सिवान का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इसका नाम ‘शिव मॅन’ नामक एक शासक के नाम पर पड़ा या यह भोजपुरी भाषा में ‘सीमा’ या ‘सरहद’ को इंगित करता है, क्योंकि यह नेपाल सीमा के पास स्थित है।
पौराणिक महत्व: दारौली क्षेत्र का ‘दोन’ स्थल महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य से जुड़ा बताया जाता है। यहाँ बुद्ध से जुड़ी मान्यताएं हैं और प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्यूएन त्सांग ने भी इस क्षेत्र का उल्लेख किया था। भेरबानिया गांव से मिली भगवान विष्णु की प्रतिमा यहाँ की प्राचीन वैष्णव परंपरा को प्रमाणित करती है।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान: डॉ. राजेंद्र प्रसाद के अलावा, मौलाना मजहरुल हक, ब्रज किशोर प्रसाद जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों ने इस क्षेत्र का गौरव बढ़ाया। सदाकत आश्रम, जो मौलाना मजहरुल हक द्वारा स्थापित किया गया था, आज भी सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है।
आधुनिक सिवान की प्रशासनिक रचना 1972 में एक स्वतंत्र जिले के रूप में हुई। इसकी उपजाऊ भूमि और घाघरा-दाह जैसी नदियां इसे कृषि प्रधान क्षेत्र बनाती हैं, जहाँ धान, गेहूं और गन्ना प्रमुख फसलें हैं।
सिवान विधानसभा क्षेत्र (सामान्य श्रेणी) सिवान लोकसभा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 1951 में गठित इस सीट पर अब तक 18 बार चुनाव हो चुके हैं। इस सीट का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा रहा है, और यही कारण है कि कोई भी पार्टी इसे अपना स्थायी गढ़ नहीं बना पाई है।
प्रमुख दावेदार: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सबसे अधिक सात बार जीत दर्ज की है (जनसंघ सहित)। कांग्रेस ने शुरुआती दौर में चार बार जीत हासिल की।
वर्तमान स्थिति: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने तीन बार, जिसमें 2020 का चुनाव भी शामिल है, जीत हासिल कर यहाँ अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। भाजपा की लगातार तीन बार की जीत का सिलसिला 2020 में तब टूट गया जब राजद ने सीट पर कब्जा किया।
सिवान की राजनीति में जातीय समीकरण की बड़ी भूमिका रही है। यह सीट ग्रामीण और शहरी मतदाताओं का मिश्रण है, जिससे यहाँ की चुनावी गतिशीलता जटिल हो जाती है:
1-यादव वोटर ग्रामीण क्षेत्र में राजद के परंपरागत समर्थक माने जाते हैं और संख्या बल में निर्णायक कहे जाते हैं।
2-राजपूत वोटर ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा/एनडीए के पारंपरिक समर्थक गिने जाते हैं और ये भी संख्या बल में मजबूत बताए जाते हैं।
3-मुस्लिम वोटर नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में आमतौर पर राजद/महागठबंधन को ही अपना बड़ा समर्थन देते हैं। साथ ही चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं।
4-बनिया (वैश्य) वोटर नगर क्षेत्र में अपने व्यावसायिक प्रभाव के साथ-साथ राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। ये वोटर भाजपा/एनडीए की ओर झुकाव रखते हैं।
5- दलित व ब्राह्मण वोटर ग्रामीण शहरी दोनों इलाकों में संतुलनकारी भूमिका निभाते हैं। लेकिन जिधर झुकते हैं, उधर जीत की संभावना बढ़ जाती है।
यह भी पढ़ें: Mokama में ललन सिंह की दबंगई! वायरल हुआ VIDEO…तो RJD ने किया EC पर अटैक, अब हो गया तगड़ा एक्शन
2025 के चुनाव में, राजद को अपनी सीट बरकरार रखने के लिए यादव और मुस्लिम समर्थन को मजबूत करना होगा, जबकि भाजपा अपनी पिछली जीत की हैट्रिक को फिर से शुरू करने के लिए राजपूत और बनिया वर्ग के साथ-साथ शहरी मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करेगी।






