पटना हाईकोर्ट (फोटो- सोशल मीडिया)
पटनाः बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे सैकड़ों अभ्यर्थियों को बड़ा झटका लगा है। पटना उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि पिछले साल दिसंबर में आयोजित इस परीक्षा के दौरान “कदाचार का कोई ठोस सबूत नहीं मिला”। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने 13 दिसंबर को राज्य भर में 900 से अधिक केंद्रों पर आयोजित संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (सीसीई) (प्रारंभिक) को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।
खंडपीठ में न्यायमूर्ति पार्थ सारथी भी शामिल थे। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आयोग से “मुख्य परीक्षा आयोजित कराने और यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि परीक्षा की प्रक्रिया शांतिपूर्ण, निष्पक्ष और पारदर्शी हो”। खंडपीठ ने कहा, “हमारा मानना है कि याचिकाकर्ताओं की ओर से की गई प्रार्थनाओं को स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ खामियां रही, लेकिन वे उस तरह की और उस परिमाण की नहीं हैं, जो परीक्षा की शुद्धता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हों। पटना के बापू परीक्षा केंद्र पर आयोजित इस परीक्षा के दौरान सैकड़ों अभ्यर्थियों द्वारा इसका बहिष्कार यह आरोप लगाते हुए किया था कि प्रश्नपत्र “लीक” हो गया था। हालांकि बीपीएससी द्वारा इस परीक्षा केंद्र के अभ्यर्थियों के लिए फिर से परीक्षा आयोजित कराई थी पर सैकड़ों अन्य अभ्यर्थियों ने “समान अवसर” नहीं दिये जाने और 100 से अधिक परीक्षा केंद्रों पर अनियमितता बरते जाने का दावा किया था।
अभ्यर्थियों ने दोबारा परीक्षा की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरना दिया जिसका बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन में उनके अन्य सहयोगियों का समर्थन किया किया। जन सुराज पार्टी के संस्थापक ने भी इसको लेकर “आमरण अनशन” किया था और प्रदर्शनकारियों को “निशुल्क” कानूनी सहायता प्रदान करने का वादा किया किया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करने वाले वकीलों में वरिष्ठ अधिवक्ता और जन सुराज पार्टी के राज्य उपाध्यक्ष वाई.वी. गिरि भी शामिल थे। गिरि की सहायता कर रहे अधिवक्ता अशोक कुमार दुबे ने 70 से अधिक पृष्ठों के अदालत के इस फैसले के बारे में संवाददाताओं से कहा कि आदेश को पढ़ने के बाद ही इस को चुनौती देने या न देने का निर्णय लिया जाएगा।
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हालांकि, दुबे ने बताया कि अदालत ने कई “सुधारात्मक उपाय” सुझाए हैं। अदालत ने आयोग को एक “उच्च स्तरीय समिति” गठित करने की सलाह दी है, जिसमें “विशेषज्ञ शामिल होंगे जो सुरक्षा उपायों और परीक्षा के समग्र प्रबंधन की समीक्षा सुनिश्चित करेंगे”। अदालत ने आयोग से परीक्षा की प्रक्रिया में खामियों को दूर करने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन करने” के लिए कहा है। अदालत ने अपनी टिप्पणियों में कहा, “परीक्षा प्रक्रिया के दौरान सभी चरणों में शिकायतें दर्ज करने के लिए एक समर्पित प्रकोष्ठ बनाया जाना चाहिए।