पिपरा विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
Pipra Assembly Constituency : सुपौल जिले की पिपरा विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 2008 में हुए परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई और तब से यह जदयू और राजद के बीच सियासी संघर्ष का केंद्र बनी हुई है। यहां जदयू की मजबूत स्थिति रही है, लेकिन विपक्ष भी लगातार चुनौती देता रहा है।
2010 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में जदयू की सुजाता देवी ने 14,686 वोटों से जीत दर्ज की। लेकिन 2015 में यह सीट राजद के यदुवंश कुमार यादव के पक्ष में चली गई, जिन्होंने भाजपा के विश्व मोहन कुमार को 36,369 वोटों से हराया। 2020 में फिर से सत्ता परिवर्तन हुआ और जदयू ने वापसी की। दिलचस्प बात यह है कि पिछले तीन चुनावों में न केवल पार्टी बदली, बल्कि उम्मीदवार भी हर बार अलग रहे।
पिपरा की राजनीति की एक खासियत यह है कि कोई भी पार्टी लगातार तीन चुनावों में एक ही उम्मीदवार को टिकट नहीं दे पाई है। यह दर्शाता है कि यहां की जनता बदलाव को पसंद करती है और हर चुनाव में नए चेहरे को मौका देती है। 2020 के विधानसभा चुनाव की तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में भी जीतने वाली पार्टी का प्रभाव क्षेत्र में बना रहा।
पिपरा विधानसभा क्षेत्र कोसी नदी के तट पर स्थित है, जो इसे कृषि के लिए उपजाऊ बनाती है। लेकिन यही नदी हर साल बाढ़ का खतरा भी लेकर आती है। कोसी इस क्षेत्र के लिए वरदान और अभिशाप दोनों है। धान, मक्का और जूट जैसी फसलें यहां बड़े पैमाने पर होती हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था का आधार हैं। बावजूद इसके, बाढ़ और कटाव जैसी समस्याएं विकास को बाधित करती हैं।
सड़क, बिजली और स्वच्छ पेयजल जैसी सुविधाओं की कमी यहां के लोगों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है। कृषि-आधारित उद्योगों की अनुपस्थिति और रोजगार के सीमित अवसरों के कारण युवाओं का पलायन लगातार बढ़ रहा है। यह मुद्दा चुनावी बहस का अहम हिस्सा बनता जा रहा है।
पिपरा सुपौल जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दक्षिण में स्थित है। इसके आसपास मधेपुरा (40 किमी), सहरसा (50 किमी), बनमंखी (60 किमी) और पूर्णिया (70 किमी) जैसे प्रमुख क्षेत्र हैं, जो इसके सामाजिक और आर्थिक जुड़ाव को मजबूत करते हैं।
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2020 के विधानसभा चुनाव में पिपरा में कुल 2,89,160 पंजीकृत मतदाता थे। इनमें 16.70% मुस्लिम, 14.65% अनुसूचित जाति और बड़ी संख्या में यादव मतदाता शामिल हैं। यादव समुदाय यहां चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित करता है, जिससे राजद को स्वाभाविक बढ़त मिलती है।
जदयू की मजबूत पकड़ के बावजूद आगामी विधानसभा चुनाव में राजद-नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन से उन्हें कड़ी चुनौती मिलने की संभावना है। जातीय समीकरण, स्थानीय मुद्दे और बदलते राजनीतिक चेहरे इस बार के चुनाव को बेहद रोचक बना रहे हैं।
पिपरा विधानसभा सीट पर जदयू और राजद के बीच सीधा मुकाबला तय है। बाढ़, बेरोजगारी और विकास की चुनौतियों के बीच जनता किसे चुनती है, यह 2025 के चुनावी नतीजे तय करेंगे। यहां की राजनीति में स्थायित्व नहीं, बल्कि बदलाव ही परंपरा बन चुका है।