सुपौल विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
Supaul Assembly Constituency: सुपौल विधानसभा सीट का राजनीतिक सफर आजादी के बाद कांग्रेस के वर्चस्व से शुरू हुआ। 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के लहटन चौधरी ने जीत दर्ज की। 1967 से 1972 तक भी कांग्रेस का दबदबा बना रहा। लेकिन 1990 में जनता दल के टिकट पर बिजेंद्र प्रसाद यादव ने जीत हासिल कर इस सीट पर एक नया अध्याय शुरू किया।
1990 और 1995 में जनता दल से विधायक चुने जाने के बाद बिजेंद्र यादव ने 2000 में जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। तब से अब तक वे लगातार इस सीट से विधायक चुने जा रहे हैं। उनकी लोकप्रियता और मजबूत जनाधार ने सुपौल को जदयू का अभेद्य किला बना दिया है, जहां विपक्ष की राह हर चुनाव में कठिन होती जा रही है।
2020 के विधानसभा चुनाव में बिजेंद्र प्रसाद यादव ने कांग्रेस के मिन्नतुल्लाह रहमानी को 28,099 वोटों के अंतर से हराया। जदयू को 50% से अधिक वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 33% से अधिक मत प्राप्त हुए। यह अंतर दर्शाता है कि सुपौल में जदयू की पकड़ कितनी मजबूत है और विपक्ष को यहां कितनी मेहनत करनी पड़ती है।
2020 में सुपौल विधानसभा क्षेत्र में कुल 2,88,703 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 तक बढ़कर 3,07,471 हो गए हैं। यहां मुस्लिम समुदाय की हिस्सेदारी 20% से अधिक है, यादव समुदाय 16.5%, अनुसूचित जाति 13.15% और शहरी मतदाता 15.05% हैं। यह जातीय विविधता चुनावी रणनीति को जटिल बनाती है और हर दल को अपने समीकरणों को सावधानी से साधना पड़ता है।
सुपौल वैदिक काल से मिथिलांचल का हिस्सा रहा है। कोसी नदी इस जिले के बीच से बहती है, जो बाढ़ के दौरान अधिकांश क्षेत्र को प्रभावित करती है। यह भौगोलिक स्थिति न केवल जीवन को कठिन बनाती है, बल्कि चुनावी मुद्दों को भी प्रभावित करती है।
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सुपौल की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। धान, मक्का और दालें यहां की प्रमुख फसलें हैं। लेकिन बाढ़ के कारण हर साल फसलें प्रभावित होती हैं। औद्योगिक विकास सीमित है और रोजगार के अवसर भी कम हैं। 2006 में पंचायती राज मंत्रालय ने सुपौल को भारत के 250 सबसे पिछड़े जिलों में शामिल किया था, जिसके चलते इसे विशेष सहायता मिली।
एनडीए के मजबूत गठबंधन और विपक्ष के ‘इंडिया गठबंधन’ के बीच सुपौल में आगामी चुनावी मुकाबला दिलचस्प होने वाला है। हालांकि बिजेंद्र यादव की स्थापित लोकप्रियता और जदयू का मजबूत आधार इस सीट पर निरंतरता की ओर इशारा करता है, लेकिन विपक्षी एकजुटता और नए मुद्दे चुनावी समीकरण को चुनौती दे सकते हैं।
सुपौल विधानसभा सीट पर जदयू की पकड़ पिछले 25 वर्षों से बनी हुई है। बिजेंद्र यादव की छवि और कामकाज ने उन्हें जनता के बीच विश्वसनीय नेता बना दिया है। अब देखना यह होगा कि 2025 के चुनाव में क्या विपक्ष इस किले को भेदने में सफल होता है या फिर जदयू एक बार फिर जीत का परचम लहराता है।