खगड़िया विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
Khagaria Assembly Constituency : खगड़िया जिले की खगड़िया विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में एक अहम स्थान रखती है। 1951 में अस्तित्व में आई इस सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का दबदबा रहा। 1952 से 1962 तक द्वारिका प्रसाद और केदार नारायण सिंह आजाद ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की। लेकिन समय के साथ राजनीतिक समीकरण बदले और यह सीट अब जेडीयू और राजद के बीच सीधी टक्कर का मैदान बन चुकी है।
अब तक इस सीट पर 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस ने पांच बार, जेडीयू ने तीन बार, संयुक्त समाजवादी पार्टी, भाजपा और निर्दलीय उम्मीदवारों ने दो-दो बार, जबकि जनता पार्टी, सीपीआई और एलजेपी ने एक-एक बार जीत दर्ज की है। ऐसे जनादेश से साफ है कि खगड़िया की जनता समय-समय पर राजनीतिक बदलाव को स्वीकार करती रही है।
हालिया चुनावी समीकरण
2005 से 2015 तक जेडीयू की पूनम देवी यादव ने लगातार 3 बार जीत दर्ज की। लेकिन 2020 में कांग्रेस के छत्रपति यादव ने उन्हें मात्र 3,000 वोटों से हराकर राजनीतिक हलचल पैदा कर दी। इस चुनाव में एलजेपी की रेणु कुमारी ने 20,719 वोट लेकर तीसरा स्थान हासिल किया, जिससे जेडीयू की हार में निर्णायक भूमिका निभाई।
2020 में खगड़िया विधानसभा क्षेत्र में 2,60,064 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 तक बढ़कर 2,67,640 हो गए हैं। यहां की जनसंख्या जातीय रूप से बेहद विविध है, जिससे जातीय संतुलन इस क्षेत्र के चुनावी परिदृश्य को गहराई से प्रभावित करता है।
जाति/समुदाय अनुमानित मतदाताओं की संख्या
वैश्य 50,000
यादव 32,000
दलित 30,000
मुस्लिम 24,000
अगड़ी जाति 20,000
कुर्मी 18,000
कोयरी 16,000
पासवान 15,000
सहनी 15,000
अन्य 45,000
यह भी पढ़ें:- अमनौर विधानसभा सीट : राजीव प्रताप रूडी के प्रभाव वाले इलाके में राजनीति, कृषि और संस्कृति का संगम
यादव समुदाय सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है और राजद के लिए मजबूत आधार प्रदान करता है। भूमिहार और ब्राह्मण परंपरागत रूप से भाजपा और जेडीयू के समर्थक रहे हैं। कुर्मी और कोयरी जैसे किसान वर्ग संगठित वोटिंग पैटर्न के कारण सभी दलों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। दलित और पासवान समुदाय अपने अधिकारों को लेकर मुखर रहते हैं, जिससे लोजपा और अन्य दलित-केंद्रित दलों को समर्थन मिलता है। मुस्लिम मतदाता परंपरागत रूप से राजद और कांग्रेस की ओर झुकाव रखते हैं, जबकि सहनी और अन्य छोटे समुदाय भी चुनावी समीकरण में अहम भूमिका निभाते हैं।
खगड़िया की भौगोलिक स्थिति इसे बार-बार बाढ़ की चपेट में लाती है। गंगा, बूढ़ी गंडक, बागमती और कोसी नदियों के किनारे बसे इस क्षेत्र में बाढ़, कटाव और पुनर्वास जैसी समस्याएं आम हैं। इसके अलावा बेरोजगारी और कृषि संकट भी यहां के प्रमुख मुद्दे हैं, जो मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित करते हैं।
खगड़िया विधानसभा सीट पर एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है। जातीय समीकरण, स्थानीय मुद्दे और पिछले चुनावों के अनुभव इस बार के परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित करेंगे। देखना यह होगा कि क्या जेडीयू अपनी खोई जमीन वापस पा सकेगा या कांग्रेस और राजद की साझेदारी फिर से जीत का स्वाद चखेगी।