
प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: AI)
NSE Report On Retail Investors Growth: भारतीय शेयर बाजार के परिदृश्य में एक बड़ा ऐतिहासिक बदलाव देखने को मिल रहा है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 में घरेलू निवेशकों ने भारतीय इक्विटी मार्केट में जमकर पैसा लगाया है। म्यूचुअल फंड और अन्य अप्रत्यक्ष निवेश माध्यमों के जरिए इस साल अब तक रिकॉर्ड 4.5 लाख करोड़ रुपए बाजार में डाले गए हैं। यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि भारतीयों की पारंपरिक बचत अब धीरे-धीरे शेयर बाजार की ओर शिफ्ट हो रही है।
NSE की रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना महामारी के बाद से देश में व्यक्तिगत निवेशकों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। साल 2019 में जहां शेयर बाजार से जुड़े निवेशकों की संख्या महज 3 करोड़ के आसपास थी, वहीं 2025 तक यह बढ़कर 12 करोड़ से अधिक हो गई है। यह वृद्धि न केवल डायरेक्ट इक्विटी निवेश में देखी गई, बल्कि म्यूचुअल फंड्स और इंडेक्स फंड्स जैसे उत्पादों के प्रति भी निवेशकों का भरोसा बढ़ा है।
इस साल की सबसे खास बात यह रही कि जहां एक ओर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय बाजार में सीमित रुचि दिखाई और बिकवाली जारी रखी, वहीं घरेलू निवेशकों की भागीदारी ने बाजार को टूटने से बचा लिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू निवेश की मजबूती ने विदेशी प्रवाह की अस्थिरता (Volatility) को कम करने में मदद की। इसकी बदौलत भारतीय बाजार वैश्विक झटकों और बाहरी दबावों को अधिक आसानी से झेलने में सक्षम रहा है। साल 2020 के बाद से बाजार से जुड़े उपकरणों में कुल घरेलू निवेश का आंकड़ा 17 लाख करोड़ रुपए के करीब पहुंच गया है।
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घरेलू निवेशकों का यह उत्साह केवल सेकेंडरी मार्केट तक सीमित नहीं रहा, बल्कि प्राइमरी मार्केट में भी शानदार प्रदर्शन देखने को मिला। साल 2025 में कंपनियों ने पूंजी जुटाने के मामले में 2024 के रिकॉर्ड को भी पार कर दिया है। आईपीओ और अन्य माध्यमों से नई पूंजी जुटाने की प्रक्रिया में रिटेल निवेशकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक संभावनाओं में उनके विश्वास को दर्शाता है।
हालांकि, यह साल चुनौतियों से मुक्त नहीं रहा। वैश्विक व्यापार अनिश्चितता, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा निर्यात शुल्क में की गई 50 प्रतिशत की भारी वृद्धि ने शुरुआत में कंपनियों की आय को प्रभावित किया। इसके बावजूद, बेहतर वित्तीय साक्षरता के कारण निवेशकों ने घबराने के बजाय बाजार की गिरावट को खरीदारी के अवसर के रूप में देखा। सितंबर तिमाही तक कंपनियों की आय में हुए सुधार ने बाजार की स्थिति को और अधिक स्थिर बना दिया है।






