
नीतीश कुमार और मुस्लिम डॉक्टर। इमेज-सोशल मीडिया।
Nitish Kumar Hijab Controversy: सुशासन बाबू कहे जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब खुद कानूनी विवादों में आ गए हैं। 15 दिसंबर को पटना में आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र बांटने के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश का एक वीडियो सामने आया, जिसने न सिर्फ सियासी भूचाल खड़ा किया, बल्कि गंभीर संवैधानिक और आपराधिक सवाल भी खड़े किए। वीडियो में नीतीश एक मुस्लिम महिला डॉक्टर नुसरत परवीन का हिजाब बिना सहमति खींचते और ये क्या है? कहते दिखते हैं, जबकि डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी उन्हें रोकने की कोशिश करते नजर आते हैं।
वीडियो सामने आते ही विपक्ष ने इसे महिला की गरिमा और धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस ने नीतीश से माफी मांगने और उन पर कानूनी कार्रवाई की मांग की। नीतीश के खिलाफ तीन अलग-अलग जगहों पर एफआईआर दर्ज की गई है। पहला एफआईआर सुमैया राणा ने लखनऊ के केसरबाग पुलिस स्टेशन में दर्ज कराई है। दूसरा मामला हैदराबाद में दर्ज कराया गया है। हैदराबाद की खालिदा परवीन ने लंगर हौज पुलिस स्टेशन में नीतीश के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है।
खालिदा परवीन ने आरोप लगाया है कि उनकी इस हरकत से महिला की लज्जा भंग हुई है। लुबना सरवथ ने हैदराबाद की ओस्मानिया पुलिस स्टेशन में नीतीश के खिलाफ शिकायत दी है। उन पर जीरो एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। घटना का सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं ने बचाव किया है। उन्होंने इसे पिता जैसा स्नेह बताकर बचाव की पुरजोर कोशिश की। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन Amnesty International ने भी घटना को महिला की स्वायत्तता, पहचान और गरिमा का उल्लंघन बताया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वकील ज्ञान रंजन मिश्रा बताते हैं कि मामला महज ईव-टीजिंग नहीं, बल्कि कहीं अधिक गंभीर है। भारतीय कानून के तहत मुख्यमंत्री नीतीश के खिलाफ अलग-अलग धाराओं में मुकदमा दर्ज हो सकता है। यह कृत्य भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के दायरे में आ सकता है, जिसमें किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से आपराधिक बल या शारीरिक संपर्क करना दंडनीय अपराध है। बिना सहमति महिला को छूना, खासकर सार्वजनिक मंच पर उसका नकाब खींचना, न सिर्फ शारीरिक हस्तक्षेप है, बल्कि सार्वजनिक अपमान की श्रेणी में भी आता है।
ज्ञान रंजन ने कहा कि इस सरकारी नियुक्ति कार्यक्रम को वर्कप्लेस माना जाए, तो यह कृत्य महिला वर्कप्लेस पर यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013 (पॉश एक्ट) के तहत आता है। इसमें अनचाहे शारीरिक संपर्क और महिला की गरिमा को प्रभावित करने वाले व्यवहार के रूप में देखा जा सकता है। कुछ शिकायतों में आईपीसी की धारा 153ए का भी जिक्र किया गया है, क्योंकि मामला मुस्लिम महिला की धार्मिक पहचान और नकाब जैसी धार्मिक प्रथा से जुड़ा है। जांच में यह साबित होता है कि इस कृत्य से सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने का तत्व मौजूद था तो यह धारा भी लागू हो सकती है। ज्ञान रंजन के अनुसार घटना कानूनी रूप से महिला की लज्जा भंग करने की कैटेगरी में आता है।
वकील ज्ञान रंजन मिश्रा ने बताया कि कानूनी लिहाज मुख्यमंत्री रहते हुए भी नीतीश के खिलाफ एफआईआर दर्ज होना और गिरफ्तारी होना मुमकिन है। भारतीय संविधान ने उन्हें राष्ट्रपति या राज्यपाल की तरह कोई विशेष इम्यूनिटी नहीं दी है। मामला संज्ञेय अपराध का बनता है तो एफआईआर दर्ज करने के लिए किसी पूर्व अनुमति या संक्शन की जरूरत नहीं होती। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार के फैसले में कहा है कि संज्ञेय अपराध की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य है। जहां तक मुख्यमंत्री रहते नीतीश की गिरफ्तारी का सवाल है तो कानून इसकी इजाजत देता है। वैसे, सुप्रीम कोर्ट के अरणेश कुमार बनाम बिहार राज्य (2014) के निर्देशों के मुताबिक, जिन मामलों में अधिकतम सजा 7 साल से कम है, वहां तत्काल गिरफ्तारी के बजाय पहले नोटिस जारी किया जाना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट का कहना है कि यह कृत्य नीतीश की ऑफिशियल ड्यूटी से असंबंधित माना जाता है तो मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी उनकी गिरफ्तारी में संवैधानिक बाधा नहीं है।
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भारत में सीएम रहते गिरफ्तारी की नजीर भी है। 2024 में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की सीएम रहते हुए ईडी ने शराब नीति केस में गिरफ्तार कर लिया था। कई दिनों बाद केजरीवाल ने सीएम पद से इस्तीफा दिया था। डीए केस में 1996 में जयललिता की गिरफ्तारी की नजीर मिलती है, जो उस समय तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं।






