बिक्रम विधानसभा सीट, (डिजाइन फोटो )
Bikram Assembly Seat Profile: बिहार की बिक्रम विधानसभा सीट इस बार चुनावी चर्चा का केंद्र बन चुकी है। यह सीट पटना जिले का एक ग्रामीण क्षेत्र है, जो अपनी उपजाऊ मिट्टी और सोन नदी के किनारे बसे गांवों के लिए जाना जाता है। इस बार का मुकाबला बेहद रोचक है क्योंकि दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस ‘दलबदल’ कर चुके पुराने दिग्गजों पर दाँव लगा रहे हैं।
भाजपा के उम्मीदवार: सिद्धार्थ सौरव
कांग्रेस के उम्मीदवार: अनिल कुमार सिंह
दिलचस्प बात यह है कि 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज करने वाले सिद्धार्थ सौरव इस बार भाजपा की ओर से चुनावी मैदान में हैं। वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार अनिल कुमार सिंह भी कभी भाजपा के लिए बिक्रम विधानसभा की पिच पर बल्लेबाजी कर चुके हैं। दोनों उम्मीदवार पहले भी अलग-अलग दलों के बैनर तले जीत हासिल कर विधानसभा पहुंच चुके हैं, और इस बार दोनों ही अपनी जीत का दावा ठोक रहे हैं।
बिक्रम सीट पर पिछले दो चुनावों से कांग्रेस का कब्जा रहा है, जिससे भाजपा को यह सीट वापस जीतने की बड़ी चुनौती मिल रही है। 2020 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की, जबकि भाजपा तीसरे नंबर पर रही। फिर 2015 में कांग्रेस ने फिर से जीत हासिल की और भाजपा दूसरे नंबर पर रही।
इससे पहले 2010 और 2005 में भाजपा ने लगातार दो बार चुनाव जीतकर अपनी पकड़ मजबूत की थी। अब भाजपा 10 साल बाद इस सीट पर कमल खिलाने के लिए जोर-शोर से जुटी है, जबकि कांग्रेस लगातार तीसरी बार जीत हासिल करके हैट्रिक पूरी करने के लिए मैदान में डटी है। एनडीए और महागठबंधन के बीच इस सीट पर कांटे की टक्कर तय मानी जा रही है।
अपनी उपजाऊ भूमि के बावजूद, बिक्रम विधानसभा क्षेत्र कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, जो स्थानीय लोगों की जिंदगी को कठिन बनाए हुए हैं। यह समस्याएँ इस बार के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं:–
1. स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल : क्षेत्र में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो हैं, लेकिन डॉक्टरों और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी है। सामान्य बीमारियों के लिए भी ग्रामीणों को निजी क्लीनिकों पर निर्भर रहना पड़ता है या फिर इलाज के लिए 30-40 किलोमीटर दूर पटना जाना पड़ता है, जो उनकी जेब पर भारी पड़ता है।
2. जर्जर सड़कें और बिजली: गांवों को जोड़ने वाली सड़कें बदहाल हैं और बारिश में कीचड़ का रूप ले लेती हैं। बिजली कटौती रातों को और अंधेरी कर देती है, जिससे ग्रामीण जीवन प्रभावित होता है।
3. शिक्षा का गिरता स्तर: स्कूल भवनों की हालत खस्ता है और शिक्षकों की कमी के कारण शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है।
4. खेती का जोखिम: विधानसभा में रहने वाले लोगों की जिंदगी मुख्य रूप से कृषि पर टिकी है, लेकिन बाढ़ और सूखे ने खेती को बेहद जोखिम भरा बना दिया है, जिससे किसानों को साल दर साल जूझना पड़ता है।
बिक्रम विधानसभा में रोजगार का अभाव जैसे यहाँ की नियति बन चुका है। स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर न के बराबर हैं, जिसके कारण युवाओं का पलायन एक बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। विधानसभा के ग्रामीण इलाकों से बड़ी संख्या में युवा दिल्ली, पंजाब, गुजरात, और तमिलनाडु जैसे राज्यों में मजदूरी, निर्माण कार्य, या फैक्ट्री जॉब्स के लिए जाते हैं। उम्मीदवार और दल, दोनों ही, रोजगार और विकास के इन बुनियादी मुद्दों पर मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रहे हैं।
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चुनावी रणनीति के लिए बिक्रम विधानसभा सीट की जनसंख्या व मतदाताओं का विवरण देखें तो पता चलता है कि इलाके की कुल जनसंख्या 5,32,443 है, जिसमें पुरुष 2,73,398 और महिलाएं 2,59,045 की संख्या में है। वहीं मतदाताओं की संख्या को देखें तो 1 जनवरी 2024 के अनुसार कुल मतदाताओं की संख्या 3,16,053 है। इसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,65,219 और महिला मतदाताओं की संख्या 1,50,816 है। वहीं थर्ड जेंडर के 18 मतदाता शामिल हैं। बिक्रम में इस बार दलबदल कर चुके दो कद्दावर नेताओं के बीच सीधे मुकाबले से चुनाव रोमांचक हो गया है। अब देखना यह है कि मतदाता 10 साल बाद कमल खिलाते हैं या कांग्रेस को जीत की हैट्रिक लगाने का मौका देते हैं।