
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Paliganj Assembly Constituency: बिहार की राजधानी पटना से दक्षिण-पश्चिम में सोन नदी के किनारे स्थित पालीगंज विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में अपनी अस्थिर चुनावी मिजाज के लिए मशहूर है। यह वह क्षेत्र है जहां मतदाता किसी भी दल या नेता को लंबे समय तक सत्ता में रहने की अनुमति नहीं देते, जिसके कारण हर चुनाव में यहां एक नई राजनीतिक पटकथा लिखी जाती है।
पालीगंज के सबसे हालिया राजनीतिक मूड का स्पष्ट संकेत 2020 के विधानसभा चुनाव में मिला। इस चुनाव में सीपीआई (माले) (लिबरेशन) के युवा उम्मीदवार संदीप सौरभ ने न केवल जीत दर्ज की, बल्कि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के दिग्गज उम्मीदवार जय वर्धन यादव (जो कांग्रेस के पूर्व दिग्गज राम लखन सिंह यादव के पोते हैं) को बड़े अंतर से हराकर सबको चौंका दिया। यह जीत महागठबंधन के लिए महत्वपूर्ण थी और इसने सीट पर वामपंथी दलों की जड़ें मजबूत कीं।
पालीगंज का इतिहास मूल रूप से दो शक्तिशाली नेताओं कांग्रेस के राम लखन सिंह यादव और सोशलिस्ट पार्टी के चंद्रदेव प्रसाद वर्मा के वर्चस्व की कहानी है, जिन्होंने बारी-बारी से पांच-पांच बार जीत हासिल की। हालांकि, 1990 के दशक के बाद यहां का चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल गया। पहले कांग्रेस का पुराना दबदबा खत्म हुआ। तो यह सीट भाजपा, राजद और भाकपा (माले) के बीच आती-जाती रही। भाजपा, राजद और जनता दल ने दो-दो बार जीत दर्ज की है। 2020 का चुनाव भी दलबदलुओं से भरा था।
राजद के मौजूदा विधायक जय वर्धन यादव ने जदयू का दामन थामा था। इस अस्थिरता ने ही भाकपा (माले) को जीत दिलाई, जो यह दर्शाता है कि मतदाता उम्मीदवार की निष्ठा से ज्यादा स्थानीय मुद्दों को महत्व देते हैं।
पालीगंज में जातिगत समीकरण चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित करते हैं। MY फैक्टर यहां काम करता है। यादव और मुस्लिम मतदाता यहां महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। 2020 में यह फैक्टर सीपीआई (माले) के पक्ष में काम किया। वहीं भूमिहार इस क्षेत्र में अच्छी संख्या में हैं, जो भाजपा और जदयू जैसी पार्टियों के लिए निर्णायक हो सकते हैं।
इस सीट की एक और खास बात यह है कि यहां वामपंथी दलों का मजबूत और पुराना संगठनात्मक आधार है, जो हर चुनाव में वोटों का एक सुनिश्चित हिस्सा रखता है। चूंकि इस बार भी युवा नेता संदीप सौरभ मजबूती से मैदान में हैं, और अन्य प्रमुख दल भी पूरी ताकत से लड़ रहे हैं, पालीगंज की लड़ाई स्थानीय मुद्दों बनाम पारंपरिक वोट बैंक की एक कांटे की टक्कर होगी।
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पालीगंज का नाम प्राचीन पाली भाषा से लिया गया है। भारतपुरा गांव में गुलाम वंश से लेकर अकबर काल तक के 1,300 से अधिक प्राचीन सिक्कों की खोज इसके समृद्ध ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती है। यह क्षेत्र बिहार विधानसभा चुनाव में बदलते जनमत और एंटी-इनकंबेंसी का सबसे बड़ा प्रतीक बना रहेगा।






