
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Buxar Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में बक्सर विधानसभा सीट न सिर्फ अपनी गौरवशाली विरासत, बल्कि कांग्रेस के वर्चस्व और ‘जन सुराज’ जैसे नए राजनीतिक कारकों के कारण भी सुर्खियों में है। बक्सर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट, जिसमें बक्सर सदर और चौसा प्रखंड शामिल हैं, इस बार त्रिकोणीय मुकाबले के लिए तैयार है।
बक्सर का चुनावी इतिहास बताता है कि यह सीट दशकों से कांग्रेस का गढ़ रही है। 1951 में गठन के बाद से कांग्रेस ने यहां 10 बार जीत दर्ज की है, जिसमें 2015 और 2020 की लगातार जीत शामिल है। 2020 का परिणाम देखा जाए तो कांग्रेस के संजय तिवारी ने भाजपा के परशुराम चौबे को हराकर सीट पर कब्जा बरकरार रखा था।
कांग्रेस ने एक बार फिर संजय तिवारी पर भरोसा जताया है, जो इस बार पार्टी के लिए जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश करेंगे। वहीं, भाजपा ने नया चेहरा आनंद मिश्रा को टिकट दिया है। इस बार का मुकाबला रोचक इसलिए है क्योंकि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी इसी क्षेत्र से आते हैं, और उनकी नई पार्टी जन सुराज के उम्मीदवार तथागत हर्षवर्धन मैदान में हैं। जन सुराज की एंट्री, खासकर प्रशांत किशोर के गृह जिले में, कांग्रेस और भाजपा दोनों के पारंपरिक वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है, जिससे यह एक सीधा मुकाबला न रहकर त्रिकोणीय हो गया है।
बक्सर के चुनाव परिणाम में जातीय समीकरणों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इस सीट पर यादव और ब्राह्मण जाति के मतदाताओं की संख्या निर्णायक मानी जाती है। ब्राह्मण समुदाय पारंपरिक रूप से कांग्रेस और भाजपा दोनों के साथ जुड़ता रहा है, लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार संजय तिवारी के लिए यह महत्वपूर्ण आधार है। राजद के साथ महागठबंधन में होने के कारण कांग्रेस को यादव वोट बैंक का समर्थन मिलता रहा है। जन सुराज के उम्मीदवार की उपस्थिति, खासकर स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित अभियान, इन दोनों प्रमुख समूहों और अन्य समुदायों के वोटों में बिखराव ला सकती है, जिससे जीत का अंतर काफी कम होने की संभावना है।
बक्सर सिर्फ राजनीति के लिए नहीं, बल्कि अपने समृद्ध इतिहास के लिए भी प्रसिद्ध है। 1764 की बक्सर की लड़ाई भी चर्चा में आती रहती है। 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर द्वारा निर्मित बक्सर किला, 1764 की उस ऐतिहासिक लड़ाई का केंद्र था, जिसने भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की नींव मजबूत की थी। इसके अलावा 1539 में हुयी चौसा की लड़ाई भी इतिहास में दर्ज है। चौसा गांव भी अब बक्सर विधानसभा का हिस्सा है। यह 1539 में शेर शाह सूरी और मुगल सम्राट हुमायूं के बीच हुए युद्ध का गवाह रहा है।
शहर से 10 किमी दूर सोन नदी पर स्थित सोन बैराज एक प्रमुख सिंचाई परियोजना है, जबकि कालीमठ मंदिर और ऋषि विश्वामित्र आश्रम इसे धार्मिक महत्व देते हैं। प्रसिद्ध शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान और पूर्व मुख्यमंत्री हरिहर सिंह की जन्मस्थली होने के कारण बक्सर का सांस्कृतिक महत्व भी उच्च है।
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बक्सर में कुल 15 उम्मीदवार मैदान में हैं। इस चुनाव में, कांग्रेस अपनी विरासत बचाने और हैट्रिक लगाने की चुनौती का सामना कर रही है, वहीं भाजपा मजबूत राष्ट्रीय जनाधार पर निर्भर है। प्रशांत किशोर की पार्टी इस कांटे की टक्कर में निर्णायक कारक बनकर उभरी है, जिसके कारण मुकाबला अत्यधिक अप्रत्याशित हो गया है।






