ईरान-इजराइल जंग में अमेरिका की एंट्री, रूस-चीन की चाल पर टिकी दुनिया की नजरें, (डिजाइन फोटो)
नई दिल्ली: ईरान और इजरायल के बीच जारी तनाव अब एक नए मोड़ पर पहुंच गया है, क्योंकि अमेरिका ने भी इस टकराव में दखल दे दिया है। पहले से ही डोनाल्ड ट्रंप की सक्रियता को देखते हुए अंदेशा जताया जा रहा थे कि अमेरिका युद्ध में कूद सकता है। आखिरकार शनिवार को अमेरिका ने ईरान की तीन परमाणु स्थलों पर हमला कर दिया। इस कार्रवाई के बाद सवाल उठ रहा है कि चीन और रूस इस मामले में क्या कदम उठाएंगे।
इस हमले के प्रति चीन की प्रतिक्रिया सामने आई है। चीन ने अमेरिका की इस कार्रवाई की निंदा करते हुए चेतावनी दी है कि अमेरिका अपनी पुरानी रणनीतिक गलतियों को दोहरा सकता है। चीन ने 2003 के इराक युद्ध का उदाहरण देते हुए कहा कि इतिहास बार-बार दिखाता है कि मध्य पूर्व में सैन्य हस्तक्षेप के खतरनाक परिणाम होते हैं। साथ ही, चीन ने यह भी कहा कि मध्य पूर्व में शांति बनाए रखने के लिए सैन्य कार्रवाई से ज्यादा प्रभावी कूटनीति और वार्ता होती है।
चीन ने पहले भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर इजरायल-ईरान तनाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था। चीन का आरोप था कि अमेरिका इस संघर्ष में आग में घी डालने का काम कर रहा है। चीनी मीडिया के मुताबिक, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सभी पक्षों, विशेष रूप से इजरायल, से हिंसा रोकने की अपील की थी।
वहीं, रूस ने अभी तक अमेरिका की ईरान पर कार्रवाई पर आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उसने पहले ही अमेरिका को इजरायल-ईरान विवाद में “सैन्य हस्तक्षेप” न करने की चेतावनी दी थी। गुरुवार को रूसी परमाणु ऊर्जा प्रमुख ने आगाह किया था कि इजरायल द्वारा ईरान के बुशहर परमाणु संयंत्र पर हमला होने पर चेरनोबिल जैसी भयावह दुर्घटना हो सकती है।
इससे पहले, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इजरायल और ईरान के बीच युद्धविराम कराने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इसे ठुकराते हुए कहा था कि पुतिन पहले यूक्रेन संकट का समाधान करने पर ध्यान दें।
अमेरिका द्वारा ईरान पर हमले के बाद अब यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि रूस और चीन इस मामले में क्या रुख अपनाएंगे। क्या वे सीधे तौर पर ईरान का समर्थन करेंगे? हालांकि, अभी तक इन दोनों देशों की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। संभावना है कि रूस और चीन ईरान और इजराइल से संघर्ष को और न बढ़ाने का आग्रह कर सकते हैं। लेकिन, यह भी माना जा रहा है कि वे चुपचाप कूटनीतिक स्तर पर ईरान का साथ दे सकते हैं।