
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प (सोर्स-सोशल मीडिया)
Trump India critical minerals: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में क्रिटिकल मिनरल्स सप्लाई चेन को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल की घोषणा की है। इस पहल में QUAD के सहयोगी देशों जापान और ऑस्ट्रेलिया को तो शामिल किया गया है, लेकिन भारत को जगह नहीं दी गई है। यह फैसला चौंकाने वाला है, क्योंकि हाल ही में अमेरिका ने US-India Critical and Emerging Technology Initiative के तहत भारत के साथ एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय समझौता किया था। ट्रंप का यह कदम भारत-अमेरिका राजनयिक संबंधों को कमजोर करता नजर आ रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा क्रिटिकल मिनरल्स सप्लाई चेन पहल में भारत को बाहर रखना एक बड़ा राजनयिक फैसला माना जा रहा है। यह पहल मुख्य रूप से चीन पर महत्वपूर्ण खनिजों (Critical Minerals) की निर्भरता कम करने और उनकी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए बनाई गई है। इस ग्रुपिंग में अमेरिका ने QUAD सहयोगी जापान और ऑस्ट्रेलिया को शामिल किया है।
इसके अलावा, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, नीदरलैंड्स, यूनाइटेड किंगडम, इजराइल और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे देशों को भी जगह दी गई है। भारत, जो QUAD का एक सक्रिय सदस्य है, उसे शामिल न करने से सदस्य देशों के बीच एक असंतुलन पैदा होता नजर आ रहा है।
ट्रंप का यह फैसला तब आया है जब कुछ समय पहले ही भारत और अमेरिका ने क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक्नोलॉजी पहल (iCET) के तहत क्रिटिकल मिनरल्स पर द्विपक्षीय समझौता किया था। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाना था।
समझौते के बावजूद भारत को इस महत्वपूर्ण बहुपक्षीय पहल (Multilateral Initiative) से बाहर रखना यह दर्शाता है कि ट्रंप प्रशासन रणनीतिक साझेदारी की तुलना में व्यापारिक या अन्य प्राथमिकताओं को अधिक महत्व दे रहा है।
माना जा रहा है कि ट्रंप का यह फैसला भारत-अमेरिका के राजनयिक संबंधों को कमजोर कर सकता है। क्रिटिकल मिनरल्स आधुनिक तकनीक, नवीकरणीय ऊर्जा और रक्षा उद्योग के लिए आवश्यक हैं। इस सप्लाई चेन पहल से बाहर रहने का मतलब है कि भारत इन खनिजों की सुरक्षित और सस्ती आपूर्ति तक पहुंचने में अन्य सहयोगियों की तुलना में पीछे रह सकता है।
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भारत की उपेक्षा ऐसे समय में हुई है जब दोनों देश चीन की बढ़ती आर्थिक और सैन्य शक्ति का मुकाबला करने के लिए रणनीतिक गठजोड़ को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। इस पहल में शामिल न होने से भारत को अपनी घरेलू तकनीक और रक्षा क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। यह कदम भारत को चीन पर निर्भरता कम करने के अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है।






