मालदीव का 2500 साल पुराना इतिहास है
Maldives History: आज के समय में मालदीव एक मुस्लिम बहुल आबादी वाला देश है और इसकी लगभग 98.5 प्रतिशत आबादी इस्लाम धर्म को मानती है। लेकिन यह देश एक समय में कभी बौद्ध धर्म का भी प्रमुख केंद्र रहा था। फिर अरब देशों के व्यापारियों के आगमन के साथ यहां इस्लाम का उदय हुआ। इस्लामी शासन के लंबे दौर के बाद, यह पुर्तगालियों और फिर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया था। मालदीव 1965 में स्वतंत्र हुआ, जो आज अपनी स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ मना रहा है। मालदीव की जनसंख्या मात्र 5 लाख है और यह 1200 द्वीपों का एक समूह है।
मालदीव की 40 प्रतिशत आबादी राजधानी माले में रहती है। मालदीव केवल 298 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जो दिल्ली के कुल क्षेत्रफल का 20 प्रतिशत है। मालदीव की आधिकारिक भाषा धिवेही है, जिसे श्रीलंका की सिंहली भाषा के समान माना जाता है।
मालदीव का इतिहास 2500 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है। लगभग 2500 साल पहले, निर्जन द्वीपों के समूह रहे मालदीव में इंसानों ने बसना शुरू किया था। यह कभी हिंदू और बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। 12वीं शताब्दी में इस देश के राजा ने इस्लाम धर्म अपना लिया था, जिसके बाद 150 सालों में यह पूरी तरह से मुस्लिम देश बन गया। वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण 25 सालों में मालदीव का 80% हिस्सा डूबने की संभावना है।
कहा जाता है कि मालदीव में प्राचीन राजतंत्र की नींव भारत के ओडिशा राज्य (प्राचीन काल में कलिंग) के राजा ब्रह्मादित्य के पुत्र बौद्ध राजा सूरदासरुण आदित्य ने रखी थी। ऐसा माना जाता है कि आदित्य के शासनकाल में ही बौद्ध धर्म मालदीव पहुंचा। लगभग एक हजार साल तक बौद्ध धर्म मालदीव का प्रमुख धर्म बना रहा। बौद्ध धर्म के प्रसार के साथ ही मालदीव में बोलचाल की भाषा में प्राचीन धिवेही लिपि का प्रयोग होने लगा। मालदीव के कई द्वीपों पर आज भी बौद्ध मठों और स्तूपों के अवशेष मौजूद हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में हवित्ता या उस्तुबु कहा जाता है।
मालदीव के थोडु द्वीप पर 1959 में बामयान जैसी एक विशाल बौद्ध प्रतिमा मिली थी। यह प्रतिमा लगभग 800 वर्षों तक मिट्टी के एक टीले के नीचे दबी रही। फुवाहमुला द्वीप पर फुआ मुलक्कू नामक 12 मीटर ऊंचा एक स्तूप भी है। यहां एक प्राचीन बौद्ध मंदिर के अवशेष भी मिले हैं। इस्लामी देश के गद्दू द्वीप पर भी एक विशाल बौद्ध स्तूप है।
प्राचीन काल में, यह देश श्रीलंका के सिंहली शासकों और दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य के प्रभाव में था। मालदीव में इस्लाम का उदय 9वीं-10वीं शताब्दी में अरब व्यापारियों के यहां आगमन के पश्चात माना जाता है। मालदीव के अंतिम बौद्ध शासक धोवेमी ने वर्ष 1153 में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। धोवेमी का नाम सुल्तान मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला रखा गया। फिर मालदीव को एक बौद्ध केंद्र से इस्लामी देश बनने में 150 वर्ष लग गए। इन इस्लामी राजाओं का शासन 1968 तक चला। मालदीव के नए संविधान के तहत, 2008 में इस्लाम को राज्य का धर्म घोषित किया गया। मालदीव की नागरिकता के लिए इस्लाम धर्म अपनाना अनिवार्य कर दिया गया।
इस्लामी शासन के बाद, मालदीव पुर्तगाल और ब्रिटेन का गुलाम रहा। पुर्तगाल ने 1558 में मालदीव पर कब्जा कर लिया। लेकिन 15 साल बाद 1573 में इसे पुर्तगाल से आजादी मिल गई। फिर यह ब्रिटेन के चंगुल में आ गया। 1887 में मालदीव ने ब्रिटेन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत, मालदीव ने अपनी आंतरिक स्वायत्तता बनाए रखी, लेकिन विदेश नीति और रक्षा नीति ब्रिटेन के हाथों में रही।
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मालदीव को 26 जुलाई 1965 को पूर्ण स्वतंत्रता मिली। 1968 में मालदीव एक गणराज्य बना और इब्राहिम नासिर पहले राष्ट्रपति चुने गए। आज प्रधानमंत्री मोदी मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ में शामिल होने माले पहुंचे हौ। मालदीव के प्रधानमंत्री इब्राहिम नासिर ने 1965 में ब्रिटेन के साथ स्वतंत्रता संबंधी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।