PIA प्राइवेटाइजेशन पर पाकिस्तान में बवाल, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan News In Hindi: पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (पीआईए) के निजीकरण का फैसला अब औपचारिक रूप से लागू हो चुका है, लेकिन इसके साथ ही देश में राजनीतिक और सार्वजनिक विवाद भी तेज हो गया है। आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान ने राष्ट्रीय एयरलाइन में अपनी 75 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी है। इस फैसले के बाद सरकार को चौतरफा आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।
इसी बीच पाकिस्तान के रक्षा मंत्री और एविएशन सेक्टर के प्रमुख ख्वाजा आसिफ के बयान ने इस विवाद को और हवा दे दी है। जियो न्यूज के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि पब्लिक सेक्टर की मौजूदा बदहाली के लिए असल जिम्मेदार नौकरशाही है लेकिन इसका ठीकरा अक्सर राजनेताओं के सिर फोड़ दिया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि जब सरकारी संस्थानों की नाकामी के लिए नेताओं को दोषी ठहराया जाता है तो उन्हें व्यक्तिगत रूप से दुख होता है।
ख्वाजा आसिफ ने पूर्व विमानन मंत्री गुलाम सरवर खान के उस बयान का भी जिक्र किया जिसमें पायलटों के फर्जी या संदिग्ध लाइसेंस होने का दावा किया गया था। आसिफ के मुताबिक, ऐसे बयानों ने पीआईए की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी नुकसान पहुंचाया और एयरलाइन की साख पर गहरा असर पड़ा।
सरकार की ओर से बढ़ते विरोध और सोशल मीडिया पर फैल रही आलोचनाओं के जवाब में बुधवार को एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। प्रधानमंत्री के निजीकरण सलाहकार मुहम्मद अली और केंद्रीय सूचना मंत्री अत्ता तरार ने साफ शब्दों में कहा कि पीआईए के निजीकरण से राष्ट्रीय गौरव को कोई ठेस नहीं पहुंचती। उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रहे उन दावों को खारिज किया जिनमें कहा जा रहा था कि एयरलाइन को उसके विमानों की कीमत से भी कम में बेच दिया गया है।
मुहम्मद अली ने बताया कि पीआईए की 75 फीसदी हिस्सेदारी के लिए आरिफ हबीब कॉर्पोरेशन के नेतृत्व वाले कंसोर्टियम ने 135 अरब पाकिस्तानी रुपये की बोली लगाई जो सबसे ऊंची और सफल बोली रही। उन्होंने इसे पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया करार दिया।
गौरतलब है कि बोली प्रक्रिया की अंतिम तारीख से ठीक दो दिन पहले सेना से जुड़ी खाद कंपनी फौजी फर्टिलाइजर प्राइवेट लिमिटेड ने खुद को इस रेस से अलग कर लिया था। इसके बाद केवल तीन दावेदार ही मैदान में बचे थे।
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विशेषज्ञों के मुताबिक, पीआईए के निजीकरण के पीछे सबसे बड़ा कारण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का दबाव है। पाकिस्तान को आईएमएफ से 7 अरब डॉलर का ऋण चाहिए और इसके बदले उसे घाटे में चल रही सरकारी कंपनियों के निजीकरण की शर्त माननी पड़ी है। इसी योजना के तहत पाकिस्तान कुल 24 सरकारी कंपनियों को निजी हाथों में सौंपने की प्रक्रिया में है जिसमें पीआईए भी शामिल है।