
पाक-अफगान की वार्ता फेल, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Afghanistan Pakistan Tension: सऊदी अरब में तालिबान और पाकिस्तान के बीच शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से हुई हालिया बैठक भी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी। अफगानिस्तान इंटरनेशनल के सूत्रों के अनुसार, तालिबान का प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तानी अधिकारियों से बातचीत करने सऊदी पहुंचा था, लेकिन लंबे समय तक चली मुलाकात के बावजूद कोई ठोस समझौता नहीं हो सका। यह लगातार तीसरी बार है जब दोनों पक्षों की वार्ता नाकाम रही है, जिससे पूरे क्षेत्र में चिंता बढ़ गई है।
इससे पहले तुर्की और कतर की मध्यस्थता में तीन दौर की बैठकें आयोजित की गई थीं। इन वार्ताओं में दोहा में हुई पहली बैठक में तत्काल युद्धविराम पर सहमति बनी थी, लेकिन आगे की बातचीत में प्रगति नहीं हो सकी। इस्तांबुल में हुए दूसरे और तीसरे दौर में भी दोनों पक्षों के बीच गहरे मतभेद सामने आए। यही कारण है कि सऊदी अरब द्वारा आयोजित यह बैठक क्षेत्रीय स्तर पर काफी अहम मानी जा रही थी।
तालिबान प्रवक्ता ज़बिहुल्लाह मुजाहिद ने इस्तांबुल वार्ता की असफलता को पाकिस्तान के “कुछ सैन्य और खुफिया अधिकारियों” द्वारा पैदा की गई बाधाओं का नतीजा बताया। मुजाहिद ने X पर लिखा कि पाकिस्तान के कुछ शक्तिशाली समूह जानबूझकर तनाव बढ़ाने और वार्ता विफल करने के लिए बहाने तलाश रहे हैं। उनके अनुसार, इन बाधाओं की वजह से दोनों देशों के संबंध बार-बार संकट में पड़ रहे हैं।
सऊदी अरब ने इस पूरी प्रक्रिया में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की पेशकश की थी, ताकि दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को कम किया जा सके। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी सऊदी की भूमिका को महत्वपूर्ण मान रहा था, क्योंकि सऊदी लंबे समय से अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों के साथ अच्छे संबंध रखता है। लेकिन लगातार असफल बैठकों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बातचीत की प्रक्रिया अब पहले से अधिक कठिन हो चुकी है।
क्षेत्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इन वार्ताओं की असफलता केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर संपूर्ण क्षेत्र की सुरक्षा पर पड़ सकता है। विशेष रूप से अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर बढ़ते तनाव और टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) की गतिविधियों के कारण स्थिति और जटिल हो सकती है।
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फिलहाल स्थिति पूरी तरह अनिश्चित बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी अरब, तुर्की और कतर की मध्यस्थता भविष्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालांकि, दोनों पक्षों की मौजूदा कठोर स्थिति को देखते हुए, निकट भविष्य में किसी बड़े समझौते की उम्मीद कम ही दिखाई देती है। तालिबान ने सऊदी बैठक पर आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, जिससे अटकलें और बढ़ गई हैं।






