मार्च में चुनाव कराने की तैयारी
12 सितंबर को सुशीला कार्की ने नेपाल की अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। यह बदलाव तब आया जब पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भ्रष्टाचार विरोधी हिंसक प्रदर्शनों के दबाव में इस्तीफा देना पड़ा। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल ने GEN-Z समूहों के प्रतिनिधियों से चर्चा करने के बाद सुशीला कार्की को देश की बागडोर सौंपी। प्रदर्शनकारियों की मांग मानते हुए राष्ट्रपति ने वर्तमान संसद को भंग कर दिया। अब मार्च 2026 तक नए चुनाव कराने के वादे के साथ सुशीला कार्की अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रही हैं।
Gen-Z को ध्यान में रखते हुए तय किए गए नाम
प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने अपनी नई कैबिनेट में ऐसे अनुभवी और ईमानदार चेहरों को जगह दी है, जिनकी पहचान भ्रष्टाचार विरोधी छवि और अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषज्ञता के लिए होती है। माना जा रहा है कि ये फैसले Gen-Z प्रदर्शनकारियों की पारदर्शिता, सुशासन और युवाओं की भागीदारी जैसी प्रमुख मांगों को ध्यान में रखकर लिए गए हैं।
ओमप्रकाश अर्याल (गृह मंत्री): सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात वकील अर्याल को न्यायाधीश सुशीला कार्की का भरोसेमंद सहयोगी माना जाता है। वे अब तक 50 से अधिक जनहित याचिकाएं दाखिल कर चुके हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, पुलिस सुधार और नागरिक अधिकारों जैसे मुद्दे प्रमुख रहे हैं। उनकी नियुक्ति से उम्मीद है कि आंदोलन और विरोध प्रदर्शनों के बाद कानून-व्यवस्था को मज़बूती मिलेगी।
बालानंद शर्मा (रक्षा मंत्री): रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल बालानंद शर्मा ने माओवादी लड़ाकों को नेपाली सेना में शामिल करने की संवेदनशील प्रक्रिया को सफलतापूर्वक संभाला था। 2006 के शांति समझौते के बाद उनकी भूमिका अहम रही। सेना से जुड़े उनके अनुभव नेपाल की रक्षा नीतियों में स्थिरता ला सकते हैं।
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रामेश्वर खनाल (वित्त मंत्री): नेपाल के पूर्व वित्त सचिव खनाल लंबे समय से आर्थिक सुधारों के समर्थक रहे हैं। वे बजट में सुधार, कर व्यवस्था की पारदर्शिता और विदेशी निवेश को बढ़ावा देने पर लगातार जोर देते रहे हैं। मौजूदा आर्थिक संकट, जैसे विदेशी मुद्रा की कमी और महंगाई से निपटने में उनका अनुभव अहम साबित हो सकता है।
कुलमान घीसिंग (ऊर्जा मंत्री): नेपाल विद्युत प्राधिकरण (NEA) के पूर्व महानिदेशक घीसिंग को ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव का चेहरा माना जाता है। उनके नेतृत्व में लोडशेडिंग खत्म हुई और जलविद्युत परियोजनाओं की रफ्तार तेज हुई। भारत-नेपाल के बीच बिजली व्यापार समझौते में उनकी बड़ी भूमिका रही, जिसके तहत अगले 10 सालों में 10,000 मेगावाट बिजली का लेन-देन संभव होगा। उनकी मौजूदगी भारत-नेपाल संबंधों को और अधिक करीब ला सकती है।