पाकिस्तानी नेता अल्ताफ हुसैन ने पीएम मोदी से लगाई गुहार, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
इस्लामाबाद: जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले और उसके जवाब में चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान से निर्वासित मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन ने एक लाइव भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना की है। उन्होंने पीएम मोदी से आग्रह किया कि पाकिस्तान में रह रहे भारत से गए मुहाजिरों पर पाकिस्तानी सेना अत्याचार कर रही है और उन्हें अब तक पूर्ण नागरिक नहीं माना जाता। अल्ताफ हुसैन ने पीएम मोदी से इन मुहाजिरों की सुरक्षा के लिए हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है।
अल्ताफ ने सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया कि कुछ मीडिया चैनलों ने उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को कोई पत्र नहीं लिखा, बल्कि उनकी प्रशंसा की है और एक भावनात्मक अपील की है। अल्ताफ के अनुसार, पीएम मोदी का बलूच जनता के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया साहस और नैतिकता का प्रतीक है।
उन्होंने पाकिस्तान में रह रहे भारत से गए मुहाजिरों पर हो रहे अत्याचारों की भी बात की। अल्ताफ ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था ने न केवल मुहाजिरों और उनकी आने वाली पीढ़ियों को पाकिस्तानी नागरिक मानने से इंकार कर दिया है, बल्कि उनकी आवाज उठाने वाली पार्टी पर भी कई बार सैन्य कार्रवाई किया गया है।
मुहाजिर उन लोगों को कहा जाता है जो भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय या उसके बाद भारत से पाकिस्तान चले गए थे। विशेष रूप से ये लोग उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों से आकर पाकिस्तान के कराची, सिंध और पंजाब जैसे इलाकों में बसे। ये मुख्य रूप से उर्दू बोलने वाले हैं और पाकिस्तान में एक अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में पहचान रखते हैं। इन्होंने पाकिस्तान के शहरी इलाकों जैसे कराची, लाहौर और सिंध में रहकर शिक्षा, व्यापार, और प्रशासनिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उन्होंने यह आरोप लगाया कि पाकिस्तान की सेना ने 25,000 से अधिक मुहाजिर युवाओं की हत्या की है और हजारों को उनके माता-पिता के सामने से अगवा कर लिया गया, जो अब तक लापता हैं। अल्ताफ हुसैन का कहना है कि बीते 61 वर्षों से मुहाजिर समुदाय को शिक्षा, अर्थव्यवस्था और शारीरिक रूप से लगातार शोषण का सामना करना पड़ रहा है, और पाकिस्तान में उनकी बात सुनने वाला कोई नहीं है विभाजन के बाद पाकिस्तान पहुंचे इन भारतीय मुसलमानों को आशा थी कि उन्हें वहां बराबरी और सम्मान मिलेगा, लेकिन कई दशक बीत जाने के बाद भी वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।