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तेल अवीव/तेहरान: लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा ईरान अब इजरायल के साथ सीधे युद्ध में है। इजरायल ने पिछले हफ्ते गुरुवार रात ईरान पर हमला कर उसके नतांज परमाणु संयंत्र और कई मिसाइल स्थलों को नष्ट कर दिया। इजरायल ने ईरान के शीर्ष सैन्य कमांडर और परमाणु वैज्ञानिकों को भी मार गिराया।
इजरायल और ईरान के बीच लड़ाई की सबसे बड़ी वजह ईरान का परमाणु कार्यक्रम है, जिसके बारे में इजरायल का मानना है कि ईरान परमाणु बम बनाने के करीब है। वहीं, ईरान इस बात से साफ इनकार करता है और कहता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम सिर्फ और सिर्फ नागरिक उद्देश्यों के लिए है।
इजरायल के ईरान पर हमले का समय इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि अमेरिका ईरान के साथ उसके परमाणु कार्यक्रम को लेकर बातचीत कर रहा है। अमेरिका की डोनाल्ड ट्रंप सरकार ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए उसके साथ परमाणु संधि करना चाहता है।
समझौते की शर्तों में ईरान से यूरेनियम संवर्धन रोकने की मांग की जा रही है। संवर्धित यूरेनियम का इस्तेमाल परमाणु बम बनाने में किया जाता है। लेकिन ईरान ने संवर्धन रोकने से इनकार कर दिया, जिससे बातचीत कमजोर पड़ गई। इसी बीच अमेरिका के सहयोगी इजरायल ने ईरान पर हमला कर दिया।
अमेरिकी प्रतिबंधों से अलग-थलग पड़े ईरान के लिए यह पहला युद्ध नहीं है। अगर इसके इतिहास पर नज़र डालें तो इसने कई युद्धों का सामना किया है, जिसमें सबसे विनाशकारी इराक के साथ उसका युद्ध है। इस युद्ध की खास बात यह थी कि उस दौरान खुद इजरायल ने इराक के खिलाफ ईरान का साथ दिया था। इस युद्ध में ईरान को भारी तबाही झेलनी पड़ी थी।
ईरान-इराक वार 1980 (सोर्स- सोशल मीडिया)
ईरान और इराक के बीच युद्ध की शुरुआत 1980 में हुई थी, जब इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने नहर शत अल-अरब विवाद का हवाला देते हुए ईरान पर अटैक कर दिया। हुसैन ने दुनिया को दिखाया कि वह लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद के कारण ईरान पर हमला कर रहे हैं, लेकिन इसके पीछे का असली मकसद कुछ और था।
हुसैन को तब बहुत मजबूत शासक माना जाता था और उन्होंने देश की सेना को बहुत शक्तिशाली बना दिया था। हमले से ठीक एक साल पहले यानी 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई और अयातुल्ला खुमैनी सत्ता में आए। ईरान राजनीतिक बदलाव के दौर से गुज़र रहा था और तब हुसैन ने सोचा कि क्यों न ईरान के तेल समृद्ध खुज़स्तान पर कब्ज़ा कर लिया जाए।
तेहरान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, इराकी राष्ट्रपति हुसैन ने दावा किया था कि ईरान की नई स्थापित इस्लामी सरकार उनके देश और मध्य पूर्व को अस्थिर करना चाहती है। उन्होंने कहा कि इससे पहले कि खोमैनी की सत्ता उनके लिए खतरा बन जाए, वे खुद खोमैनी को सत्ता से हटा देंगे। इसी तर्क के साथ उन्होंने ईरान पर हमला किया और इस हमले में उन्हें अमेरिका समेत दुनिया की बड़ी ताकतों का समर्थन मिला।
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इराक ने ईरान के एयरबेस और दूसरे रणनीतिक ठिकानों पर बमबारी की। हमले के ठीक एक हफ्ते बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने दोनों पक्षों से युद्ध विराम का आह्वान किया और सभी मुद्दों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की बात कही। इसके जवाब में इराकी राष्ट्रपति हुसैन ने कहा कि अगर ईरान युद्ध विराम के लिए राजी होता है, तो उनका देश भी राजी हो जाएगा। लेकिन ईरान ने युद्ध विराम के लिए राजी होने से साफ इनकार कर दिया।
इराक ने ईरान पर हमला किया था, लेकिन हमले के बाद ईरान ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी, वह इराक के लिए महंगी साबित हुई। आज इजरायल ने उसी तर्क के साथ ईरान पर हमला किया है, जिसके साथ उसने इराक के खिलाफ ईरान की मदद की थी। इजरायल इराक के परमाणु कार्यक्रम से नाराज था।
यहूदी देश इजराइल हमेशा से चाहता रहा है कि क्षेत्र के अरब देश परमाणु हथियार न बनाएं क्योंकि उसके अनुसार यह उसके अस्तित्व के लिए खतरा होगा। इजराइल का कहना था कि इराक फ्रांस की मदद से परमाणु हथियार बना रहा है जिसका इस्तेमाल वह इजराइल के खिलाफ कर सकता है। और जब ईरान और इराक के बीच युद्ध शुरू हुआ तो इजराइल को इराक पर हमला करने का मौका मिल गया।
इजरायल ने इराक के ओसिराक रिएक्टर पर हमला कर उसकी कथित परमाणु योजनाओं को नाकाम कर दिया। भले ही अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देश उसका समर्थन कर रहे थे लेकिन परमाणु रिएक्टर पर हमले ने इराक का मनोबल कमजोर कर दिया। हमले के समय इराक ने ईरानी सेना को कम आंका था लेकिन 1982 तक ईरानी सेना ने उन सभी इलाकों को आजाद करा लिया जिन पर इराकी सेना का कब्जा था।
इराक-ईरान वार (सोर्स- सोशल मीडिया)
इसके बाद इराक ने युद्ध विराम की पेशकश की लेकिन ईरान ने साफ इनकार कर दिया। खुमैनी ने पहले हमला करने के लिए इराक को सबक सिखाने का मन बना लिया था। हुसैन ने खुमैनी को सत्ता से हटाने के उद्देश्य से ईरान पर हमला किया और युद्ध शुरू होने के दो साल के भीतर ही खुमैनी ने सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाकर इराक में इस्लामिक गणराज्य स्थापित करने का मन बना लिया था।
लेकिन इस युद्ध में ईरान को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा। सद्दाम हुसैन ने बिना किसी रोक-टोक के ईरान के खिलाफ रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग मारे गए। सद्दाम हुसैन ने मस्टर्ड गैस और नर्व गैस टैबुन जैसे हथियारों से लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा। अमेरिकी और पश्चिमी देशों ने सद्दाम हुसैन की क्रूरता का पूरा समर्थन किया क्योंकि वे ईरान की इस्लामी सरकार को मजबूत होने से रोकना चाहते थे।
दोनों देशों के बीच यह युद्ध 8 साल बाद 1988 में खत्म हुआ, जिसमें दोनों देशों को जान-माल का भारी नुकसान हुआ। लेकिन इराक यह साबित करने में सफल रहा कि अरब जगत में उसके पास सबसे बड़ी सेना है। माना जाता है कि युद्ध में दोनों तरफ से 10 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे। इराक के रासायनिक हमलों में ईरान में बड़ी संख्या में लोग मारे गए और उसके बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा।
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युद्ध में ईरान इराक से अपनी जमीन बचाने में तो सफल रहा लेकिन वह सद्दाम हुसैन को सत्ता से नहीं हटा सका। साथ ही इराक वह मकसद हासिल नहीं कर सका जिसके लिए उसने ईरान पर हमला किया था। उसे न तो ईरानी जमीन मिली और न ही वह खुमैनी को सत्ता से हटा सका। दोनों देशों के बीच आठ साल तक चला युद्ध इतना भीषण था कि दोनों देश आज तक पूरी तरह से उबर नहीं पाए हैं।