
इमरान खान, फोटो (सो. सोशल मीडिया)
Pakistan Inran Khan News: पाकिस्तान की राजनीति में देशद्रोह सिर्फ एक आरोप नहीं, बल्कि दशकों से सत्ता संघर्ष का अहम हिस्सा रहा है। हाल ही में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सलाहकार राणा सनाउल्लाह ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ संभावित ट्रेजन केस का संकेत देकर राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।
एक स्थानीय मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में सनाउल्लाह ने कहा कि इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) के डायरेक्टर जनरल की हालिया प्रेस कॉन्फ्रेंस का संदेश बहुत स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि इमरान खान और उनकी पार्टी पीटीआई को इस चेतावनी को हल्के में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।
सनाउल्लाह का दावा है कि इमरान खान की हालिया बयानबाजी और लहजा संकेत देता है कि हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं और उनके खिलाफ देशद्रोह का केस चलाने की संभावना पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है।
यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब इमरान खान पहले से ही कई मामलों में जेल में बंद हैं और पीटीआई को चुनावी मैदान से लगभग बाहर धकेल दिया गया है। साथ ही सेना की आलोचना को पाकिस्तान में रेड लाइन माना जाता है, जिसके पार जाने पर गंभीर कार्रवाई की आशंका रहती है। सनाउल्लाह का यह कहना कि इमरान रेड लाइन क्रॉस कर चुके हैं, देश में सत्ता-सैन्य रिश्तों के भीतर छिपी खाई को दर्शाता है।
सूत्रों के अनुसार, सेना के भीतर भी कुछ अधिकारी इमरान के आरोपों खासकर कथित साइफर प्रकरण को एक व्यवस्थित दुष्प्रचार अभियान मानते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह चेतावनी सिर्फ राजनीतिक दबाव का हिस्सा है, या इसके पीछे खुफिया रिपोर्टों और संस्थागत दबाव की गूंज भी है?
पाकिस्तान का इतिहास यह दिखाता है कि देशद्रोह के आरोप अक्सर राजनीतिक परिस्थितियों पर निर्भर रहे हैं। जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी, बेनजीर भुट्टो पर लगाए गए एंटी-स्टेट आरोप, हुसैन सुहरावर्दी की गिरफ्तारी और नवाज शरीफ पर 1999 के विमान मामले की कार्रवाई ये सभी राजनीतिक इंजीनियरिंग के उदाहरण बताए जाते हैं। विडंबना यह है कि पाकिस्तान में हाई-ट्रेजन का पहला प्रमाणित मामला किसी राजनेता के बजाय सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के खिलाफ सिद्ध हुआ था।
इमरान खान का केस अलग है क्योंकि उन पर सिर्फ संवैधानिक उल्लंघन का नहीं, बल्कि नरेटिव वॉरफेयर चलाने का आरोप है। साइफर दस्तावेज को राजनीतिक हथियार बनाना, सेना पर खुले आरोप लगाना और विदेश नीति को चुनावी भाषणों का हिस्सा बनाना ये सब सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए सीधे चुनौती माने जाते हैं।
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यह मुकदमा वास्तव में चलेगा या सिर्फ दबाव बनाने का तरीका है यह अभी साफ नहीं, लेकिन इतना निश्चित है कि पाकिस्तान की राजनीति में देशद्रोह का शब्द एक बार फिर सत्ता संघर्ष के केंद्र में आ खड़ा हुआ है।






