रेगिस्तान में परमाणु तैयारी, सांकेतिक फोटो (सो. एआई डिजाइन)
US China Nuclear Tension: अमेरिका के रक्षा मंत्रालय पेंटागन की ताजा रिपोर्ट ने चीन की बढ़ती परमाणु सैन्य तैयारियों को लेकर गंभीर चिंता जताई है। रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने अपने उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी हिस्सों के रेगिस्तानी इलाकों में बड़े पैमाने पर मिसाइल साइलो फील्ड विकसित किए हैं, जिनका उद्देश्य किसी भी संभावित परमाणु हमले की स्थिति में तुरंत जवाबी कार्रवाई करना है।
पेंटागन के मुताबिक, चीन ने तीन प्रमुख क्षेत्रों यूमेन, हामी और यूलिन में सैकड़ों मिसाइल साइलो बनाए हैं। इनमें यूमेन को सबसे बड़ा साइलो क्षेत्र बताया गया है। इन तीनों स्थानों पर मिलाकर 300 से अधिक साइलो तैयार किए जा चुके हैं जिनमें प्रत्येक में लंबी दूरी की इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) तैनात की जा सकती है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि इनमें से 100 से ज्यादा साइलो में पहले ही DF-31 श्रेणी की परमाणु मिसाइलें लोड की जा चुकी हैं।
अमेरिकी रिपोर्ट का कहना है कि चीन अब ‘अर्ली वॉर्निंग काउंटरस्ट्राइक’ क्षमता विकसित कर रहा है। इसका मतलब यह है कि यदि उसे दुश्मन के परमाणु हमले की शुरुआती चेतावनी मिलती है तो वह तुरंत जवाबी परमाणु हमला करने में सक्षम होगा। इस रणनीति को मजबूत करने के लिए चीन ने न केवल जमीन पर मिसाइल साइलो तैयार किए हैं बल्कि अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स और जमीन पर अत्याधुनिक लंबी दूरी के रडार सिस्टम भी तैनात किए हैं। ये सिस्टम हजारों किलोमीटर दूर से दागी गई मिसाइलों को ट्रैक करने में सक्षम बताए जा रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि चीन लगातार नई मिसाइल तकनीक पर काम कर रहा है। हाल ही में एक सैन्य परेड के दौरान उसने DF-31BJ नाम की नई इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल का प्रदर्शन किया था, जिसे दुनिया के किसी भी हिस्से में हमला करने में सक्षम माना जा रहा है। इसके साथ ही चीन ने रूस के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किए हैं, जिनका मकसद मिसाइल हमलों से निपटने और सामरिक समन्वय को मजबूत करना बताया गया है।
पेंटागन के आकलन के अनुसार, चीन के पास वर्तमान में 600 से अधिक परमाणु वॉरहेड हैं और यह संख्या 2030 तक 1,000 से पार जा सकती है। इस तेजी से बढ़ती परमाणु क्षमता के चलते चीन दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी परमाणु शक्ति बन चुका है। अमेरिका का मानना है कि इससे न केवल क्षेत्रीय संतुलन प्रभावित हो रहा है बल्कि अमेरिकी मुख्य भूमि की सुरक्षा पर भी सीधा खतरा पैदा हो सकता है।
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हालांकि, चीन ने पेंटागन की इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए इसे भ्रामक और पक्षपातपूर्ण बताया है। बीजिंग का कहना है कि उसकी परमाणु नीति पूरी तरह रक्षात्मक है और वह न्यूनतम प्रतिरोध की रणनीति पर ही कायम है। चीन ने एक बार फिर यह दोहराया है कि वह ‘पहले इस्तेमाल न करने’ (No First Use) की नीति का पालन करता रहेगा।