
फ्लोटिंग आर्टिफिशियल आइलैंड (सोर्स- सोशल मीडिया)
China Building World First Floating Artificial Island: दक्षिण चीन सागर में चीन का नया कदम पूरे क्षेत्र के संतुलन को बदल सकता है। बीजिंग 78,000 टन वजन वाला एक ऐसा तैरता आइलैंड बना रहा है जो न्यूक्लियर हमले तक झेल सकता है। चार महीनों तक 238 लोगों के रहने लायक यह ढांचा किसी भी समुद्री जगह पर तैनात किया जा सकेगा। इस प्रोजेक्ट ने वियतनाम सहित पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में गहरी चिंता पैदा कर दी है।
चीन ने दक्षिण चीन सागर में एक बेहद उन्नत और रहस्यमय फ्लोटिंग आर्टिफिशियल आइलैंड बनाना शुरू कर दिया है। स्टील-आर्मर वाले इस प्लेटफॉर्म को न्यूक्लियर ब्लास्ट-रेजिस्टेंट बताया जा रहा है। यानी यह सिर्फ परंपरागत युद्ध ही नहीं बल्कि परमाणु हमले को भी झेलने की क्षमता रखता है। इसका वजन 78,000 टन है और इसमें 238 लोग लगातार चार माह तक रह सकते हैं। यह प्रोजेक्ट वर्ष 2028 तक पूरा होना है और इसी कारण एशियाई देशों में इसकी प्रतिक्रिया तेजी से बढ़ रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार चीन का यह तैरता हुआ आइलैंड तकनीक, रणनीति और ताकत का अनोखा मिश्रण है। दक्षिण चीन सागर को अपने नियंत्रण में दिखाने की कोशिश कर रहे चीन के लिए यह एक नया हथियार है। वियतनाम, फिलिपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देश पहले ही चीन की बढ़ती आक्रामकता से परेशान हैं। अब यह प्लेटफॉर्म उन विवादों के बीच चीन की उपस्थिति को और अधिक मजबूत कर देगा। यह केवल एक ढांचा नहीं बल्कि बीजिंग का चलता-फिरता दावा है, जो पूरे समुद्री संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
चीन की सरकारी मीडिया के अनुसार यह प्लेटफॉर्म समुद्र में लंबी दूरी तक मिशन चला सकेगा और जरूरत के मुताबिक किसी भी लोकेशन पर तैनात किया जा सकेगा। इसमें आधुनिक कमांड सेंटर, रडार सिस्टम, एंटी-मिसाइल शील्ड और अत्यधिक मौसम झेलने वाला सुपर-आर्मर लगाया गया है। सबसे बड़ा दावा यह है कि न्यूक्लियर हमले के बाद भी यह ऑपरेशनल रह सकता है। यह दावा क्षेत्रीय देशों के लिए डर बढ़ाने वाला है क्योंकि इससे चीन को समुद्र के भीतर लगभग अभेद्य सैन्य ताकत मिल जाएगी।
दक्षिण चीन सागर वैश्विक व्यापार के लिए सबसे महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है। दुनिया का करीब 30% व्यापार इसी रास्ते से गुजरता है। चीन लंबे समय से “नाइन-डैश लाइन” के आधार पर इस पूरे क्षेत्र पर दावा करता रहा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय अदालत पहले ही खारिज कर चुकी है। लेकिन चीन की रणनीति अलग है, जहां दावा न मानें, वहां वास्तविकता बदल दो।
इसी रणनीति के तहत वह आर्टिफिशियल आइलैंड, सैन्य रनवे और अब न्यूक्लियर-सेफ फ्लोटिंग आइलैंड बना रहा है, जिसे डूबाना मुश्किल, मिसाइलों से नष्ट करना कठिन और हर मौसम में सक्रिय रखना आसान।
चीन और वियतनाम के बीच दक्षिण चीन सागर का विवाद सबसे पुराना और सबसे गंभीर माना जाता है। चीन पहले ही वियतनाम के तेल खोज मिशनों को रोक चुका है, उसकी नावों को चुनौती दे चुका है और स्प्रैटली आइलैंडों के पास निर्माण गतिविधियां तेज कर चुका है। अब यह तैरता हुआ न्यूक्लियर-रेजिस्टेंट ढांचा चीन को यह सुविधा देगा कि वह इसे वियतनाम के EEZ (आर्थिक समुद्री क्षेत्र) के बेहद पास तक ले जा सके। वियतनाम इसे खुले खतरे की तरह देख रहा है।
हालाकि वियतनाम किसी भी बड़े सैन्य गठबंधन में औपचारिक रूप से शामिल नहीं है, लेकिन चीन की इस नई चाल के बाद उसके समीकरण बदल रहे हैं। वह अमेरिका, जापान और भारत के साथ मिलकर रक्षा सहयोग बढ़ा रहा है। हनोई का संदेश साफ है कि वह चीन की दबाव नीति के आगे झुकने वाला नहीं है।
चीन ने समझ लिया है कि कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय कानून उसके दावों को मजबूत नहीं कर सकते। इसलिए वह समुद्र में वास्तविक नियंत्रण स्थापित करने में जुटा हुआ है। आर्टिफिशियल आइलैंड, मिसाइल बेस, नौसैनिक रनवे और अब यह फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म उसी रणनीति का हिस्सा हैं। इससे चीन की उपस्थिति इतनी मजबूत हो जाएगी कि कोई भी देश उसके दावों को आसानी से चुनौती नहीं दे पाएगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चीन ऐसे कई फ्लोटिंग आइलैंड तैनात करता है तो दक्षिण चीन सागर एक स्थायी तनाव क्षेत्र बन सकता है।
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चीन का यह फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म सिर्फ इंजीनियरिंग का चमत्कार नहीं बल्कि भू-रणनीतिक चाल है। यह बीजिंग को समुद्र में मोबाइल सैन्य ताकत देता है, जिससे दक्षिण चीन सागर भविष्य में और गरमाई का केंद्र बन सकता है। यहां हर कदम, हर निर्माण और हर नई तैनाती क्षेत्रीय देशों के बीच नए विवादों को जन्म दे सकती है।






