
बांग्लादेश यूनुस के प्रेस सेक्रेटरी शफीकुल आलम (सोर्स-सोशल मीडिया)
Media Attack Safety Concerns: बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम की एक हालिया फेसबुक पोस्ट ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इस पोस्ट में उन्होंने ढाका के प्रमुख मीडिया संस्थानों पर हुए हिंसक हमलों के दौरान खुद को ‘असहाय’ और ‘शर्मिंदा’ बताया।
जब सरकार का एक प्रभावशाली प्रतिनिधि ही सुरक्षा देने में अपनी विफलता स्वीकार कर रहा हो, तो आम नागरिकों और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उठना लाजमी है। 18 दिसंबर की उस काली रात ने न केवल प्रेस की आजादी, बल्कि राज्य की प्रशासनिक क्षमता को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।
शफीकुल आलम ने अपनी पोस्ट में खुलासा किया कि 18 दिसंबर की रात उन्हें ‘प्रथम आलो’ और ‘द डेली स्टार’ के पत्रकारों के रोते हुए फोन आए थे। उन्होंने लिखा, “मैंने सही लोगों को दर्जनों फोन किए, मदद जुटाने की कोशिश की, लेकिन वह समय पर नहीं पहुंच सकी।
एक पूर्व पत्रकार होने के नाते मैं शर्मिंदा हूं। काश, मैं जमीन खोदकर खुद को उसमें दफना पाता।” यह स्वीकारोक्ति दर्शाती है कि हिंसा के दौरान सरकारी तंत्र पूरी तरह पंगु हो गया था।
ढाका में ‘प्रथम आलो’ और ‘द डेली स्टार’ के दफ्तरों पर कट्टरपंथी भीड़ ने हमला किया, तोड़फोड़ की और आगजनी की। ‘प्रथम आलो’ के 27 साल के इतिहास में यह पहली बार था जब अखबार का प्रिंट एडिशन प्रकाशित नहीं हो सका।
पत्रकारों को जान बचाने के लिए घंटों छत पर छिपना पड़ा। इस हमले को छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के प्रतिशोध के रूप में देखा जा रहा है, जिसने पूरे देश को अराजकता की ओर धकेल दिया है।
प्रेस सचिव की इस ‘बेबसी’ पर बांग्लादेश के प्रमुख अखबारों और बुद्धिजीवियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। ‘प्रथम आलो’ ने लेख लिखकर पूछा कि अगर सरकार के शक्तिशाली लोग ही खुद को सुरक्षित या सक्षम नहीं पा रहे हैं, तो अल्पसंख्यक और आम नागरिक किसके भरोसे रहें?
सोशल मीडिया पर यूजर्स ने इसे ‘स्टेट फेलियर’ (राज्य की विफलता) करार दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि यह स्थिति उन ताकतों को बढ़ावा दे रही है जो कानून को अपने हाथ में लेना चाहती हैं।
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मीडिया संस्थानों के साथ-साथ हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय पर भी हमले बढ़े हैं। यूएन एक्सपर्ट आइरीन खान ने चेतावनी दी है कि सार्वजनिक गुस्से का इस तरह हथियार बनाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
सरकार के भीतर समन्वय की कमी और कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम न कस पाना अंतरिम सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।






