
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में तेज हुई आजादी की मांग (सोर्स- सोशल मीडिया)
Insurgency in Pakistan: पाकिस्तान इस समय गंभीर सुरक्षा और राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। देश न केवल आंतरिक विद्रोह और आतंकवाद से जूझ रहा है, बल्कि राजनीतिक अस्थिरता और सेना तथा सरकार के बीच बढ़ती खींचतान ने हालात और जटिल बना दिए हैं। खासतौर पर दो बड़े प्रांत बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा (KP) खुले तौर पर असंतोष और विद्रोह की स्थिति में हैं।
इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर रिसर्च एंड सिक्योरिटी स्टडीज (CRSS) की रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी से सितंबर 2025 के बीच पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों में 2,414 लोगों की मौत हुई। 2024 की इसी अवधि में यह संख्या 1,527 थी, यानी इस साल मौतों में 58% की वृद्धि हुई है। केवल तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में 901 मौतें और 599 घायल दर्ज किए गए। कुल हिंसा की 96% से अधिक घटनाएँ खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में केंद्रित रही हैं। इनमें सबसे ज्यादा मौतें KP में हुईं, जो कुल का लगभग 71% हैं।
इन प्रांतों में विद्रोही समूहों का प्रभाव इतना मजबूत है कि कई क्षेत्रों में पाकिस्तानी सेना की पहुंच तक मुश्किल है। केपी में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) सक्रिय है, जो शरिया लागू करने की मांग करता है, और अफगान तालिबान भी प्रांत के कुछ हिस्सों पर दावा पेश करता है। बलूचिस्तान में बलूच विद्रोही लंबे समय से संसाधनों के शोषण, राजनीतिक भेदभाव और सेना के अत्याचारों के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष कर रहे हैं।
सरकार और सेना इन विद्रोहों पर नियंत्रण पाने में असफल रही है। अक्सर इन घटनाओं का दोष भारत पर लगाया जाता है, और प्रत्येक बड़े हमले को भारत समर्थित बताया जाता है। सेना प्रमुख आसिम मुनीर, जिन्हें ‘मुल्ला जनरल’ कहा जाता है, इन विद्रोहों को फितना अल-ख्वारिज बताते हैं और उन्हें इस्लामी दृष्टिकोण से गलत ठहराने की कोशिश करते हैं।
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मुनीर के नेतृत्व में पाकिस्तान की स्थिति और गंभीर मानी जा रही है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश को आक्रामक दिखाने और आर्थिक मदद हासिल करने की रणनीति अपनाई। भारत के साथ तनाव बढ़ाना भी उनकी रणनीति का हिस्सा है। मई में हुए ऑपरेशन ‘सिंदूर’ में, कई रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान हुआ, लेकिन मुनीर ने खुद को फील्ड मार्शल का पद दिला लिया।






