पाकिस्तान में खामोश तख्तापलट की आशंका, फोटो ( सो. सोशल मीडिया )
इस्लामाबाद: पाकिस्तान में सीजफायर के दौरान एक बड़ा राजनीतिक बदलाव होने का संकेत मिल रहा है। जहां एक तरफ सेना प्रमुख असीम मुनीर अपनी ताकत और पद को मजबूत करने में जुटे हैं, वहीं दूसरी तरफ शहबाज शरीफ भी अपनी प्रधानमंत्री की सीट बचाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इस संघर्ष के बीच मुनीर को फील्ड मार्शल के पद पर नियुक्त किया गया था, लेकिन अब जो खबरें पाकिस्तान से आ रही हैं, वे शरीफ परिवार के लिए अच्छी नहीं हैं।
संघर्षविराम के बाद इस्लामाबाद के सत्ता गलियारों में ‘खामोश तख्तापलट’ की चर्चाएं तेज हो गई हैं। सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर की बढ़ती दखलअंदाजी अब सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच गई है, जो शहबाज शरीफ के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है।
पाकिस्तानी मीडिया समा की रिपोर्ट के अनुसार, आर्मी चीफ असीम मुनीर ने अपने करीबी सहयोगी बिलाल बिन शाकिब की नियुक्ति प्रधानमंत्री कार्यालय में करवाई है। उन्हें क्रिप्टो और वित्तीय मामलों के सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया है। खास बात यह है कि उन्हें मंत्री स्तर का दर्जा भी प्रदान किया गया है। इसका मतलब है कि शाकिब को वही सुविधाएं मिलेंगी, जो एक मंत्री को मिलती हैं। उनकी बैठने की व्यवस्था प्रधानमंत्री कार्यालय में की गई है, जहां से वे अपने कार्यों को संचालित करेंगे।
बिलाल बिन शाकिब को पाकिस्तान की सेना में एक प्रभावशाली व्यक्ति और मुनीर का करीबी माना जाता है। जानकारी के अनुसार, प्रधानमंत्री कार्यालय में उनकी नियुक्ति से पहले वह असीम मुनीर से व्यक्तिगत रूप से मिले थे। इस मुलाकात का मुख्य विषय क्रिप्टोकरेंसी था। खास बात यह रही कि इस मुलाकात के केवल 24 घंटे के भीतर ही बिलाल को प्रधानमंत्री कार्यालय में एक ऐसे विभाग में नियुक्त कर दिया गया, जिसमें सेना प्रमुख की भी गहरी रुचि रही है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिति काफी बदल गई है। अब शाकिब की मौजूदगी अब सीधे शहबाज शरीफ के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप की वजह बन रही है। इससे स्पष्ट होता है कि मुनीर अब केवल ‘बैकसीट ड्राइवर’ नहीं रह गए हैं, बल्कि वह सामने की सीट पर बैठकर राजनीति की कमान संभालने लगे हैं।
भविष्य में इस स्थिति से शहबाज शरीफ सरकार की स्वतंत्रता और भी सीमित हो सकती है। अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या यह केवल एक अकेली नियुक्ति है, या फिर मुनीर पीएम कार्यालय में अपने और अन्य लोगों को बैठाकर सरकार पर सीधे नियंत्रण करने की रणनीति बना रहे हैं।