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लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2004 के यूपी मदरसा एक्ट को संवैधानिक घोषित करने और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करने पर राजनीतिक दल भले ही सतर्कता से प्रतिक्रिया दे रहे हों, लेकिन इसका असर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव पर पड़ना तय है। क्यों और कैसे? इन सवालों का जवाब आपको हमारी इस रिपोर्ट में मिल जाएगा।
सत्ताधारी दल जहां कह रहा है कि वह इस मामले में कोर्ट के फैसले का सम्मान करेगा, वहीं समाजवादी पार्टी इस फैसले को लेकर तीखे तेवर दिखा रही है। समाजवादी पार्टी का यह तेवर बेवजह नहीं है, क्योंकि 2004 का यूपी मदरसा एक्ट तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के शासनकाल में पारित हुआ था। 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद कई भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया पर समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा था और मुल्ला मुलायम के एक्ट को असंवैधानिक करार दिए जाने पर कटाक्ष किया था।
अब एक बार मौका सपा के पास है यही वजह है कि समाजवादी पार्टी के नेता खुलेआम बयान दे रहे हैं कि भाजपा के लोग हमारी सरकार में किए गए कामों को लेकर जनता को गुमराह कर सकते हैं, लेकिन कोर्ट हमारे सभी फैसलों को मंजूरी दे रहा है। सपा प्रवक्ता और इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष अजीत यादव ने साफ कहा है कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को मुल्ला कहने वाले और सांप्रदायिकता फैलाने और तुष्टीकरण करने वाले भाजपा नेताओं को अब सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए।
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अजीत यादव के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला यह बताने के लिए काफी है कि सपा की लोकप्रिय सरकारों ने हमेशा वोट बैंक के लालच में जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी के हित में फैसले लिए हैं। उनके मुताबिक समाजवादियों ने कभी कोई असंवैधानिक काम नहीं किया। भाजपा कानून की धज्जियां उड़ाकर समाज को टुकड़ों में बांटने का काम करती है। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड एक्ट जिसे इस साल 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने असंवैधानिक करार दिया था, वह साल 2004 में पारित हुआ था।
उस समय मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री थे। इस एक्ट के बनने के बाद भी खूब राजनीतिक बयानबाजी हुई थी। एक्ट पारित होने के बाद यूपी के मदरसों को मान्यता मिलनी शुरू हुई। वहां सरकार की निगरानी में अलग से परीक्षा की व्यवस्था की गई। मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को धार्मिक और आधुनिक दोनों तरह की शिक्षा एक साथ दी जा रही थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश के करीब पच्चीस हजार मदरसों पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा था।
वहीं, आज सुप्रीम कोर्ट से जो फैसला आया है, उसका असर उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव पर भी पड़ सकता है। भाजपा जहां इस मुद्दे पर चुप रहने की कोशिश करेगी, वहीं समाजवादी पार्टी इस बहाने योगी सरकार पर नपे-तुले अंदाज में हमला बोलेगी। उपचुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण के डर से समाजवादी पार्टी सीधे तौर पर इस मुद्दे को उठाने से भले ही परहेज करे, लेकिन इसे पृष्ठभूमि बनाकर योगी सरकार पर निशाना साधने की कोशिश जरूर करेगी।
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सपा जहां अल्पसंख्यक वोटरों को एकजुट रखने की कोशिश करती नजर आ सकती है, वहीं इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखकर योगी सरकार की मंशा पर भी सवाल उठा सकती है। प्रयागराज की फूलपुर और कानपुर की सीसामऊ समेत कुछ ऐसी सीटों पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुद्दा भी बन सकता है, क्योंकि यहां विपक्षी दलों ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं।