अखिलेश यादव व पंकज चौधरी (कॉन्सेप्ट फोटो)
UP Politics: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट एक बार फिर सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष के बीच सत्ता संघर्ष का अखाड़ा बनने जा रही है। यह सीट सपा विधायक सुधाकर सिंह के निधन के बाद खाली हुई थी। हालांकि चुनाव आयोग ने अभी तक उपचुनाव की तारीख की घोषणा नहीं की है, लेकिन समाजवादी पार्टी ने दिवंगत विधायक के बेटे सुजीत सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित करके अपने इरादे साफ कर दिए हैं।
यह उपचुनाव जो 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले होगा, जो राज्य की राजनीति की दिशा तय कर सकता है, जिससे यह दोनों खेमों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है। सहानुभूति वोटों का फायदा उठाने की सपा की रणनीति ने इस मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है।
अब सभी की निगाहें इस उपचुनाव में भाजपा और उसके सहयोगियों की रणनीति पर टिकी हैं। पिछली हार के बावजूद भाजपा एक बार फिर इस सीट पर पूरी ताकत लगा सकती है। 2022 के विधानसभा चुनावों में सपा उम्मीदवार दारा सिंह चौहान ने भाजपा उम्मीदवार विजय राजभर को 22,216 वोटों से हराया था।
इसके बाद 2023 के उपचुनाव में सपा के सुधाकर सिंह ने भाजपा के दारा सिंह चौहान को 42,672 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। माना जाता है कि दारा सिंह चौहान के सपा छोड़कर भाजपा में शामिल होने से जनता में नाराजगी थी। अब भाजपा को यह तय करना होगा कि वह किसी नए चेहरे को मैदान में उतारेगी या किसी पुराने दावेदार को।
इस बार तो सपा प्रत्याशी को सहानुभूति का फायदा भी मिल सकता है। यह चुनाव यूपी बीजेपी के नए बॉस पंकच चौधरी के लिए भी साख का सवाल होने वाला है। यही वजह है कि अखिलेश के इस दांव ने लखनऊ से दिल्ली तक हलचल पैदा कर दी है।
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भाजपा जिला अध्यक्ष रामसहाय मौर्य का दावा है कि पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी और संगठन पूरी तरह से तैयार है। इस बीच, सपा जिला अध्यक्ष दूधनाथ यादव को विश्वास है कि सुजीत सिंह को अपने दिवंगत पिता के काम और उससे मिलने वाले सहानुभूति वोटों का सीधा फायदा मिलेगा।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर का कहना है कि इस सीट को लेकर भाजपा नेतृत्व से बातचीत चल रही है। कांग्रेस के मऊ जिला अध्यक्ष राज मंगल यादव का मानना है कि शीर्ष नेतृत्व के निर्देशों का पालन किया जाएगा। हालांकि कांग्रेस और सुभासपा की भूमिका सीमित हो सकती है, लेकिन उनके वोट बांटने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
सपा से लगातार जुड़े रहे सुधाकर सिंह की राजनीतिक यात्रा इस उपचुनाव का केंद्र बन गई है। चार बार के विधायक सुधाकर सिंह को भी सपा से दो बार निकाला गया था, लेकिन उन्होंने कभी पार्टी नहीं छोड़ी। करीब एक महीने पहले उनकी मौत के बाद घोसी की राजनीति में एक भावनात्मक खालीपन महसूस हो रहा है। उनके बेटे सुजीत सिंह इसे जनसेवा की ज़िम्मेदारी बताते हैं। उन्होंने कहा कि पिता को खोने के बाद घोसी के लोग ही उनका सबसे बड़ा सहारा हैं।