पूर्व मुख्यमंत्री मायावती (फाइल फोटो)
लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने राजनीतिक संन्यास की अटकलों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि कुछ लोग बहुजनों के अम्बेडकरवादी कारवां को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा होने वाला नहीं है। वह जिन्दगी की आखिरी सांस तक बसपा के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान आंदोलन के लिए समर्पित रहने वाली हैं। ऐसे में सक्रिय राजनीति से उनका संन्यास लेने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।
26-08-2024-BSP PRESS NOTE-SANYAS FAKE NEWS pic.twitter.com/nhbBIEJhUl
— Mayawati (@Mayawati) August 26, 2024
बसपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 27 अगस्त को लखनऊ स्थित पार्टी कार्यालय में होने वाली बैठक को लेकर मीडिया में यह अटकलें लगायी जा रहीं थी कि मायावती अपने भतीजे आकाश आनन्द का कद बढ़ा सकती हैं। इसके अलावा उनके संन्यास लेने की भी अटकलें थीं। इसलिए बैठक से पहले कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए ऐसी सारी अफवाहों को विराम लगा दिया है।
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बसपा प्रमुख ने सोमवार को ‘एक्स’ के सोशल मीडिया हैंडल पर अपने आधिकारिक एकाउंट से जानकारी देते हुए कहा ” बहुजनों के अम्बेडकरवादी कारवां को कमजोर करने की विरोधियों की साजिशों को विफल करने और बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर एवं कांशीराम जी की तरह ही मेरी जिन्दगी की आखिरी सांस तक बसपा के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान आंदोलन को समर्पित रहने का फैसला अटल है।”
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उन्होंने अगली पोस्ट में कहा ”अर्थात् सक्रिय राजनीति से मेरा संन्यास लेने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। जबसे पार्टी ने आकाश आनन्द को मेरे ना रहने पर या अस्वस्थता की स्थिति में बसपा के उत्तराधिकारी के रूप में आगे किया है तबसे जातिवादी मीडिया ऐसी फर्जी खबर प्रचारित कर रहा है जिससे लोग सावधान रहें।”
1. बहुजनों के अम्बेडकरवादी कारवाँ को कमजोर करने की विरोधियों की साजिशों को विफल करने के संकल्प हेतु बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर एवं मान्यवर श्री कांशीराम जी की तरह ही मेरी जिन्दगी की आखिरी सांस तक बीएसपी के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान मूवमेन्ट को समर्पित रहने का फैसला अटल।
— Mayawati (@Mayawati) August 26, 2024
इसलिए नहीं बनेंगी राष्ट्रपति
मायावती ने यह भी कहा ”पहले भी मुझे राष्ट्रपति बनाए जाने की अफवाह उड़ाई गयी, जबकि कांशीराम जी ने ऐसी ही पेशकश को यह कहकर ठुकरा दिया था कि राष्ट्रपति बनने का मतलब है सक्रिय राजनीति से संन्यास लेना होता है, जो पार्टी हित में उन्हें गंवारा नहीं था। तो फिर उनकी शिष्या को यह स्वीकारना कैसे संभव है..?”