desert to green का क्या है मतलब। (सौ. Design)
नवभारत टेक डेस्क: दुनियाभर में छोटे-बड़े मिलाकर 100 से अधिक रेगिस्तान हैं, जिनमें से भारत में 14 बड़े रेगिस्तान मौजूद हैं। वैज्ञानिकों की चिंता है कि अगर इन रेगिस्तानों के विस्तार को नहीं रोका गया तो ये धीरे-धीरे दिल्ली जैसे शहरों तक पहुंच सकते हैं। हालांकि, विज्ञान ने इस चुनौती का समाधान खोज लिया है। अब वैज्ञानिक रेगिस्तान को हरा-भरा ग्रीनलैंड में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
नेवादा के रेगिस्तान शोध संस्थान के इकोलॉजिस्ट लिन फेनस्टरमेकर के मुताबिक, जहां सालाना 10 इंच से कम बारिश होती है, उसे रेगिस्तान माना जाता है। ग्लोबल एयर सर्कुलेशन पैटर्न में गड़बड़ी और ग्लोबल वार्मिंग के चलते रेगिस्तान बनते हैं। भूमध्य रेखा पर सोलर एनर्जी के असर से हवा गर्म होती है, जिससे नमी खत्म हो जाती है और रेगिस्तानी क्षेत्र बनते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि सिंचाई और जल प्रबंधन के जरिए रेगिस्तानों को हराभरा बनाया जा सकता है। इसके लिए वृक्षारोपण और आर्टिफिशियल बारिश की तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। मक्का के अल-बायदा प्रोजेक्ट में इस तकनीक का सफल उदाहरण देखने को मिला, जहां भारी बारिश के जरिए सूखी जमीन को उपजाऊ बनाया गया।
सऊदी अरब ने बारिश के पानी को संचित करके रेगिस्तानी इलाकों में खेती संभव बनाई। बांध, नालियां और टेरेस बनाकर बारिश के पानी को इकट्ठा किया गया और इसका इस्तेमाल खेतों में किया गया। नतीजा यह हुआ कि सूखी जमीन पर पेड़ और फसलें उगाई जाने लगीं।
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नॉर्वे की स्टार्टअप कंपनी ‘डेजर्ट कंट्रोल’ ने ‘लिक्विड नैनोक्ले’ नामक तकनीक विकसित की, जिससे सिर्फ 7 घंटे में रेगिस्तानी जमीन को उपजाऊ बनाया जा सकता है। यह तकनीक रेतीली मिट्टी में नमी और पोषक तत्वों को बनाए रखती है। यूएई में इस तकनीक का सफल परीक्षण किया गया, जिससे रेगिस्तानी इलाकों में खेती का सपना सच हुआ।
राजस्थान के थार रेगिस्तान में रमेश्वर सोनी नामक किसान ने जैविक खाद और विशेष तकनीकों का उपयोग करके आम की खेती सफलतापूर्वक की। इसने दिखाया कि वैज्ञानिक प्रयासों और दृढ़ संकल्प से रेगिस्तानी इलाकों में खेती संभव है।