AI को लेकर बड़ी चिंता। (सौ. AI)
Impact of AI on education: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बढ़ते प्रयोग को लेकर दुनिया भर में बहस जारी है। सोशल मीडिया पर हाल ही में एक 29 वर्षीय कलाकार की राय ने खासा ध्यान खींचा है। उनका कहना है कि लोग अंधाधुंध तरीके से ChatGPT और अन्य AI टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे न केवल रचनात्मकता मर रही है बल्कि इंसान अपनी असली पहचान भी खोता जा रहा है।
कलाकार ने तंज कसते हुए लिखा, “यह मज़ेदार है कि लोग कहते हैं चीन हमारा डेटा चुरा रहा है, जबकि वे रोज़ाना ऐसे प्लेटफ़ॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं जो उनकी जानकारी चुरा रहे हैं।” उनका मानना है कि ChatGPT पर लोग ऐसे भरोसा कर रहे हैं जैसे यह सबसे विश्वसनीय स्रोत हो, जबकि हकीकत इससे बिल्कुल अलग है।
उन्होंने चिंता जताई कि बच्चे स्कूलों में भी AI पर निर्भर हो रहे हैं। “मैं डरता हूँ अगली पीढ़ी को देखकर, क्योंकि वे तकनीक की लत में इतने डूब जाएंगे कि खुद सोचने-समझने की क्षमता खो देंगे।” कलाकार का कहना है कि इंसान को सीखने का अनुभव चाहिए, लेकिन AI सिर्फ शॉर्टकट देता है, जिससे लोग आलसी और निर्भर बनते जा रहे हैं।
एक कलाकार होने के नाते उन्होंने AI आर्ट को पूरी तरह खारिज किया। “आपने कुछ नहीं बनाया। पहली नज़र में अच्छा दिख सकता है लेकिन इसमें इंसानियत की कमी है, और कला के लिए यही सबसे ज़रूरी तत्व है।” उन्होंने यहां तक दावा किया कि उन्होंने पिछले साल कम से कम दो फ़िल्में देखीं जो पूरी तरह AI द्वारा लिखी गई लगती थीं, जो उनके लिए बेहद निराशाजनक अनुभव था।
कलाकार का मानना है कि AI का असली फ़ायदा सिर्फ़ अमीरों को हो रहा है जबकि मध्यम और निम्न वर्ग इसके नुक़सान उठाएंगे। “अमीर और अमीर हो रहे हैं, जबकि बाक़ी तबका धीरे-धीरे नुकसान झेलेगा, लेकिन हमें अभी इसका एहसास नहीं है।”
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उन्होंने अपनी चिंता जाहिर करते हुए लिखा, “मैं पागल लग सकता हूँ, लेकिन मुझे लगता है इंसान अपनी ही बर्बादी का आधार तैयार कर रहा है। यह इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन की लत है, जिसमें मेहनत और मानवीय जुड़ाव दोनों खत्म हो जाते हैं।”
AI को लेकर यह बहस नई नहीं है, लेकिन कलाकार जैसे लोगों की राय यह दर्शाती है कि इंसानी रचनात्मकता, शिक्षा और समाज पर इसके दीर्घकालिक असर को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। तकनीक सुविधा दे सकती है, पर क्या यह इंसानियत की जगह ले सकती है? यही असली चिंता है।