आयुर्वेद को दिलाई वैश्विक पहचान (सौ.सोशल मीडिया)
आयुर्वेद भारतीय संस्कृति में रचा-बसा हुआ है।घर-घर में आयुर्वेद का प्रयोग निरंतर ही होता है।बावजूद इसके इसे व्यापक स्वरूप देने में बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्रा.लि.का बहुत बड़ा योगदान है। सुरेश शर्मा के नेतृत्व में कम्पनी 500 उत्पादों का निर्माण करती है।कम्पनी द्वारा निर्मित उत्पादों की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि उसकी देश और दुनिया में काफी मांग है।”जब मनुष्य निष्कपट हितैषियों, तटस्थों, तथा मित्रों को समान भाव से देखता है, वह और भी महान माना जाता है।वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन प्रा.लि.के संचालक श्री सुरेशजी शर्मा कुछ इसी प्रकार के व्यक्तित्व हैं।
बिना किसी भेदभाव के सभी का स्वास्थ्य ठीक रहे, इसी उद्देश्य से बैद्यनाथ के माध्यम से उनका जीवन सफर जारी है। देश के प्राचीन ग्रंथों में आयुर्वेद साहित्य का उल्लेख विशेष रूप से है।इन ग्रंथों में मिले संकेत को समझकर हजारों साल तक ऋषि-मुनियों ने मानवीय इलाज को संभव कर दिखाया।प्राचीनकाल में आयुर्वेद के अलावा कोई और विकल्प मानव के समक्ष नहीं था, लेकिन वर्तमान युग में आयुर्वेद के समक्ष अनेक चुनौतियां होने के बाद भी उसे बचाने का काम कुछ ऋषितुल्य तपस्वियों ने किया है, जिनमें बैद्यनाथ के संस्थापक वैद्य पं।श्री रामनारायणजी शर्मा पहली श्रेणी में हैं।
आयुर्वेद भारतीय इतिहास में रचा-बसा हुआ है।घर-घर में आयुर्वेद का प्रयोग ही होता है, लेकिन इसे व्यापक स्वरूप देने वाली कुछ चुनिंदा कम्पनियां ही हैं।नागपुर के लिए यह गौरव की बात है कि सबसे बड़ी कम्पनियों में से एक बैद्यनाथ आयुर्वेदिक की विकास यात्रा यहीं से संभव हो पाई है। पिछले 107 वर्षों के दौरान वैद्यनाथ ने न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी है।आज आधुनिक जीवनशैली में आयुर्वेद का उपयोग बिना संकोच किया जा रहा है।लोगों का विश्वास आयुर्वेद के प्रति तेजी से बढ़ रहा है।विदेशी भी आयुर्वेद चिकित्सा के चमत्कार को मानने लगे हैं।1917 में स्थापना वैद्यनाथ आयुर्वेदिक भवन की स्थापना वैद्य पं।श्री रामनारायणजी शर्मा ने 1917 में बिहार के वैद्यनाथधाम में की थी।वैद्य पं।रामनारायणजी आयुर्वेद के प्रख्यात पंडित थे।
शुरू में छोटे पैमाने पर हाथ से ही आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण करते थे।उनके द्वारा निर्मित दवाओं का असर रोगियों पर सकारात्मक होता था, जिसके कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई।वैद्य पं.रामनारायणजी दूरदृष्टा थे।वे केवल एक शहर तक सीमित नहीं रहना चाहते थे।काम बढ़ने के बाद उन्होंने कोलकाता में 1940 में संयंत्र की स्थापना की।लेकिन कुछ कारणों से उन्हें 1940 में ही पटना में भी फैक्टरी लगानी पड़ी।बैद्यनाथ द्वारा तैयार की गई दवाओं की मांग काफी तेजी से बढ़ने लगी, जिसके बाद वैद्य पं।श्री रामनारायणजी ने इसे अलग-अलग क्षेत्रों में ले जाने का रोड मैप बनाया।उत्तर भारत के लिए झांसी में 1941, दक्षिण और पश्चिम भारत में माल भेजने के उद्देश्य से 1942 में नागपुर और इसके बाद नैनी (इलाहाबाद) में 1961 में फैक्टरी की स्थापना की।
चूंकि पं।श्री रामनारायणजी स्वयं वैद्य थे, इसलिए वे खुद ही नई-नई दवाइयों का मिश्रण तैयार करते थे।गहरा अनुभव होने के कारण दवाइयां बेहतर बनती थीं, जिससे रोगी को लाभहोता था।फिर दवाओं की मांग और नेटवर्क बढ़ता गया।आज देश के हर कोने में बैद्यनाथ की दवाएं मिल जाती हैं।700 से अधिक बिक्री केंद्र और 60000 से अधिक एजेंसियां वैद्यनाथ की दवाएं बेच रही हैं।वैद्यनाथ आयुर्वेदिक के करीब 500 उत्पाद हैं।
बैद्यनाथ के संस्थापक वैद्य पं।रामनारायणजी का कारोबार जैसे-जैसे फैलता गया, वैसे-वैसे वैद्यों की श्रृंखला भी जुड़ती गई।दवाओं की रेंज भी बढ़ती गई।आज हर प्रमुख रोग या समस्याओं के लिए वैद्यनाथ के पास दवाएं हैं।वर्ष 2000 में सिवनी में बैद्यनाथ की ओर से अत्याधुनिक संयंत्र की स्थापना की गई।आज अधिकांश प्रचलित ‘ब्रांड’ यहीं पर बनाये जा रहे हैं।अधिकांश काम आधुनिक मशीनों के माध्यम से ही होते हैं।जड़ी-बूटी की पहचान से लेकर घोल तैयार करने तक का कार्य आधुनिक मशीन से हो रहे हैं।सिवनी प्लांट के विस्तार की भी योजना है।गत 25 सालोंमे हुए आधुनिक बदलाव के चलते तथा आंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखते हुए, हाल ही में मध्य प्रदेश के बोरगांव स्थित MPIDC के Industrial Area में अत्याधुनिक तकनीकी से लेर्स इस औषधी निर्माण संयंत्र स्थापित किए गये है।और संयंत्र से export oriented unit के तौर पर Ayurvedic Functional Food & Dietary Supplements का निर्माण किया जा रहा है।
कोलकता, पटना, झांसी, नागपुर और इलाहाबाद में समूह का संयंत्र है।कम्पनी को आईएसओ 9000, जीएमपी गुणवत्ता का प्रमाण पत्र हासिल है।कम्पनी यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका माल भेजती है।26 जुलाई 1948 को जन्मे श्री सुरेश शर्मा 19 साल की आयु में ही पिता के कारोबार से जुड़ गए।सिंधिया स्कूल और बिट्स पिलानी से शिक्षा लेने वाले श्री सुरेश शर्मा को तब आयुर्वेद का कोई अनुभव भी नहीं था, लेकिन उच्च शिक्षा के कारण आधुनिकता और प्रबंधन का बेहतर अनुभव था।उन्होंने बैद्यनाथ के कारोबार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया।श्री सुरेश शर्मा को अपने बहनोई श्री कैलाशनाथजी का अमूल्य मार्गदर्शन मिला।श्री सुरेश शर्मा जब कारोबार से जुड़े थे, तब सालाना कारोबार 30-35 लाख था और आज नागपुर बैद्यनाथ का कारोबार 300 करोड़ सालाना के ऊपर पहुंच गया है, वही बैद्यनाथ समूह का कारोबार 750 करोड़ है।पिता और बहनोई से श्री शर्मा ने आयुर्वेद की बारीकियां सीखीं और आज वे हाथ से छूकर जड़ी-बूटी की पहचान कर लेते हैं।
बदलाव को अपनाना जरूरी श्री शर्मा मानते हैं कि बदलते समय के साथ परिवर्तन जरूरी है।लेकिन बदलाव की हवा में बुनियाद मजबूत होनी चाहिए।यानी उत्पाद बेहतर होगा, तभी लोग उसे अपनाएंगे।इसलिए बैद्यनाथ ने लेबल बदले, मशीनीकरण कर आधुनिक तौरतरीके अपनाये, लेकिन उत्पाद की शुद्धता को कहीं भी हाथ नहीं लगाया।बल्कि इसे और बेहतर करने के लिए हरसंभव प्रयास किए। वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित श्री सुरेश शर्मा मानते हैं कि आयुर्वेद केवल जड़ी-बूटी नहीं है, बल्कि यह विज्ञान आधारित शास्त्र है, जिसमें मिश्रण, घोल, समय का परफेक्ट ध्यान रखना पड़ता है।समय के पहले या समय के बाद घोल मिश्रण होने पर दवाएं असरदार नहीं होतीं।इसलिए प्रशिक्षित कर्मचारियों को एक-एक पल पर नजर रखना पड़ता है।आयुर्वेदिक की मौलिकता को कायम रखते हुए निर्माण शालाएं आधुनिक साधनों से सुसज्ज हैं।
पिछले 107 सालों में शोध कर बैद्यनाथ द्वारा असंख्य फार्मूले इजाद किए गए हैं।कम्पनी ने 70 पेटेंट अपने नाम किए हैं।10 सर्वसुविधायुक्त संयंत्रों में फार्मूला बनाया जाता है।संयंत्रों को गुणवत्ता के लिए जीएमपी और आईएसओ प्रमाणपत्र मिला हुआ है।शोध और विकास केंद्र (आरएंडडी) में लोग लगे रहते हैं, ताकि नई दवाओं की खोज की जा सके।आधुनिक उपकरणों से लैस लैब को अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिली हुई है।
श्री सुरेश शर्मा के प्रयासों का फल ही है कि देश-दुनिया में जटिल बीमारियों से त्रस्त रोगी ठीक हो रहे हैं।श्री शर्मा को इस कार्य से आत्मसंतुष्टि की अनुभूति होती है।सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक संस्थाओं से वे दिल से जुड़ते हैं और लगनपूर्वक कार्य करते हैं।उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।श्री शर्मा की नजरों में श्रमिक सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं।श्रमिकों के उत्थान के लिए वे कभी भी तैयार रहते हैं।उनका मानना है कि वे खुश रहेंगे, तो कम्पनी भी विकास करेगी।श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य का ख्याल रखा जाता है।श्री शर्मा की धर्मपत्नी श्रीमती कल्पना शर्मा हर्बल उत्पाद को बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं।उनके मार्गदर्शन में ट्रीटमेंट केंद्र चल रहे हैं।
श्री शर्मा मानते हैं कि जिस प्रकार एलोपैथी को बजट से सहायता मिलती है, उसी तर्ज पर आयुर्वेद का भी बजट बढ़ाना लाजिमी हो गया है।आयुर्वेदिक जैसी सटीक चिकित्सा पद्धति पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है, जबकि यह पद्धति ऐसी है, जिससे किसी को नुकसान नहीं होता।
जिस प्रकार आयुर्वेद को बढ़ाने में वैद्यनाथ का अमूल्य योगदान है, उसी प्रकार प्रकृति को बचाने की प्रतिबद्धता भी कम्पनी के पास है, कम्पनी ने सोलर और विंड ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में प्रवेश किया है।सोलर से 40-45 मेगावाट बिजली कर्नाटक में पैदा की जा रही है, जबकि हवा (विंड) से बिजली पैदा करने का संयंत्र लगाया गया है।
वैद्यनाथ की ओर से आयुर्वेदिक पर आधार र74 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है।पुस्तकें विश्वविद्यालय, कॉलेज में उपलब्ध है।विद्यार्थी शोध कार्य के लिये इन पुस्तकों का उपयोग करते हैं।केन्द्र सरकार, नेपाल सरकार से किताबों को पुरस्कार मिल चुके है।वैद्यनाथ समूह को बढ़ाने में श्री ब्रजेन्द्र कुमार शर्मा, श्री विश्वनाथ शर्मा, श्री शिवनाथ शर्मा, श्री रमेश कुमार शर्मा का भी अमूल्य योगदान है।श्री विश्वनाथ सांसद रह चुके है जबकि श्री रमेश उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं। बच्चे भी व्यापार में वहीं पुत्र श्री प्रणव और श्री सिद्धेश पिता के साथ कारोबार से जुड़े हैं।कम्पनी के विविधिकरण में वे सहयोग कर रहे हैं