मराठी भाषा पर बवाल (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, हमारे मन में विचार आता है कि तुलसी, मीरा, सूरदास और कबीरदास की रचनाएं पढ़ें। हरिवंशराय बच्चन की मधुशाला में अपने मन को डुबोएं।’ हमने कहा, ‘अपने मन की करने के पहले मनसे की राय जान लीजिए। महाराष्ट्र में रहकर हिंदी के प्रति प्रेम जताना कुछ ऐसा ही है जैसे पानी में रहकर मगर से बैर करना ! आप अंग्रेजी में शेक्सपीयर, बायरन, मिल्टन, शेली, वर्डसवर्थ, टामस हार्डी को पढ़िए, किसी को आपत्ति नहीं है लेकिन तीसरी भाषा हिंदी से लगाव मत रखिए।
‘ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रयासों में कमी नहीं की। मोदी-शाह की केंद्र सरकार की नीतियों के अनुरूप चलते हुए उन्होंने शुरूआत में पहली से पांचवीं तक हिंदी को अनिवार्य किया। फिर विरोध होने पर हिंदी को वैकल्पिक कर दिया लेकिन जब कुंभ मेले में बिछड़े हुए भाइयों के समान उद्धव और राज ठाकरे हिंदी विरोध के मुद्दे पर एकसाथ आ गए तो फडणवीस ने बैकफुट पर जाते हुए दोनों जीआर या शासकीय आदेश वापस ले लिए।
महाराष्ट्र में मराठी को ही अपनाना होगा।’ हमने कहा, ‘एएसईआर रिपोर्ट 2024 (ग्रामीण) के मुताबिक कक्षा 3 के केवल 37 प्रतिशत छात्र मराठी की दूसरी कक्षा की पुस्तक पढ़ पाते हैं, जबकि 63 प्रतिशत बच्चे नहीं पढ़ पाते। ऐसा है महाराष्ट्र में मराठी शिक्षा का स्तर ! मराठी शालाएं बंद हो रही हैं। मराठी भाषी खुद अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम से पढ़ा रहे हैं। हिंदी का विरोध करने वाले नेता पहले मराठी की दुर्दशा तो दूर करें।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, भारत की राजनीति क्षेत्रवाद, भाषावाद जैसे भावनात्मक मुद्दों पर चलती है। इसे लेकर नेता अपना उल्लू सीधा करते हैं।
दक्षिण-उत्तर की राजनीति इसी तरह चलाई जाती है। तमिलनाडु और कर्नाटक भी तो हिंदी का विरोध करते हैं।’ हमने कहा, कोई कितना भी हिंदी विरोध करे लेकिन हिंदी फिल्में और हिंदी गाने सभी पसंद करते हैं। दुर्गा खोटे, शोभना समर्थ, ललिता पवार, लीला चिटणीस, शशिकला, नूतन, तनूजा, माधुरी दीक्षित सभी की मातृभाषा मराठी होने पर भी उन्होंने हिंदी फिल्मों से नाम कमाया। उन्हें किसी ने हिंदी प्रेम के लिए मना नहीं किया।’
चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा