
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे, सोनिया-राहुल गांधी (Image- Social Media)
Karnataka Politics: कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद को लेकर कांग्रेस में जारी खींचतान अब पार्टी हाईकमान के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच समझौते की कोशिशों के बावजूद, अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की आवश्यकता है? इसके साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की वह अधूरी इच्छा भी फिर से चर्चा में है, जिसमें उन्होंने कभी सीएम बनने का मलाल जताया था।
कर्नाटक में अब दलित विधायकों का दबदबा बढ़ता जा रहा है, और वे कांग्रेस की 2023 की बड़ी जीत में अपनी भूमिका का हवाला देकर उचित प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं। इस पर पार्टी के भीतर चर्चा तेज हो गई है कि अगर नेतृत्व में बदलाव करना पड़े तो खरगे जैसा कद और स्वीकार्यता रखने वाला नेता सबसे सुरक्षित विकल्प हो सकता है। खरगे का नाम इसलिए प्रमुख हो रहा है, क्योंकि उनका दलित समुदाय में गहरा प्रभाव है और पार्टी में भी उन्हें एक अनुभवी और भरोसेमंद नेता माना जाता है।
कर्नाटक में सीएम पद के लिए कांग्रेस में अब दो और नाम उभर रहे हैं। पहला नाम है जी. परमेश्वर, जो दलित समुदाय से आते हैं। दूसरा नाम सतीश जारकीहोली का है, जो एसटी समुदाय के बड़े नेता हैं और सिद्धारमैया सरकार में मंत्री भी हैं। ये दोनों नेता खुद को शिवकुमार के मुकाबले संतुलन बनाने वाले नेताओं के रूप में स्थापित कर रहे हैं। जारकीहोली ने तो यहां तक कह दिया है कि उन्हें राज्य कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलनी चाहिए, और उन्होंने तीन-चार डिप्टी सीएम बनाने की भी इच्छा जताई है ताकि ओबीसी, लिंगायत और अल्पसंख्यक समुदायों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल सके। वहीं, सिद्धारमैया के बेटे यतिंद्र भी जारकीहोली को अपने पिता का असल उत्तराधिकारी मान चुके हैं।
पिछले सप्ताह, शिवकुमार खेमे ने दोबारा दावा किया कि सिद्धारमैया ने नवंबर के मध्य तक पद छोड़ने पर सहमति जताई थी, और इस खुले तौर पर बढ़ते विवाद ने जातीय राजनीति को भी हवा दी। स्थिति बिगड़ती देख, कांग्रेस हाईकमान ने दखल दिया और दोनों नेताओं की बंगलुरु में नाश्ते पर मुलाकात करवाई। दोनों ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वे हाईकमान के फैसले का सम्मान करेंगे। इसी हफ्ते, सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच दोपहर के भोजन की एक मुलाकात हो सकती है, और संभवतः उन्हें दिल्ली भी बुलाया जा सकता है।
कर्नाटक चुनाव में दलित नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे उनकी ताकत बढ़ी है। खरगे की रणनीति में अहम भूमिका निभाने वाले दलित नेताओं ने इस बार चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया। खरगे ने जी. परमेश्वर को एससी आरक्षित 36 सीटों की निगरानी दी थी, जिनमें से कांग्रेस ने 32 सीटें जीतीं। वहीं, जारकीहोली को 15 एसटी सीटों की जिम्मेदारी दी गई थी, जिनमें से 14 सीटें कांग्रेस ने जीतीं। इन नेताओं का दावा है कि उन्होंने सामान्य सीटों में भी दलित वोटों को कांग्रेस के पक्ष में मजबूत किया।
कर्नाटक में सीएम पद को लेकर जब खींचतान चरम पर थी, तभी एससी-एसटी नेताओं का दिल्ली पहुंचना और लगातार बैठकें करना यह संकेत देता है कि वे अब पार्टी में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के मूड में हैं। कई नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर नेतृत्व में बदलाव करना है, तो मल्लिकार्जुन खरगे सबसे मजबूत और सर्वमान्य विकल्प होंगे। खबरों के मुताबिक, इस पृष्ठभूमि में राहुल गांधी ने खरगे और उनके बेटे प्रियंक खरगे से दिल्ली में मुलाकात की, जिससे यह अटकलें तेज हो गईं कि क्या कर्नाटक का नेतृत्व बदलने की स्थिति में खरगे खुद इस दौड़ में शामिल हो सकते हैं।
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खरगे कई बार सीएम पद की दौड़ में रहे, लेकिन हमेशा आखिरी क्षण में बाजी उनके हाथ से निकल गई। उन्होंने कई मौकों पर सीएम न बनने को लेकर मलाल भी जताया है। अब जब सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच स्थायी समाधान की स्थिति नहीं बन रही, दलित विधायकों की शक्ति बढ़ रही है, और पार्टी को एक मजबूत और अनुभवी चेहरा चाहिए, तो यह सवाल फिर से जोर पकड़ रहा है, क्या कर्नाटक को नया मुख्यमंत्री मिलेगा? और क्या वह चेहरा मल्लिकार्जुन खरगे होंगे? कांग्रेस हाईकमान के अगले कदम पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।






