
दुष्कर्मी सेंगर को राहत से उठ रहे सवाल
Navbharat Digital Desk: यदि कानून के सामने सब बराबर हैं, तो कुलदीप सेंगर जैसे दुष्कर्मी की आजीवन कारावास की सजा रद्द कर उसे जमानत पर क्यों छोड़ा गया? चुनाव से तीन माह पूर्व दलबदल कर बीजेपी की टिकट पर चुनाव जीतने वाले बाहुबली नेता कुलदीप सेंगर ने 4 जून 2017 को नौकरी दिलाने का झांसा देकर एक 17 वर्षीय युवती को अपने घर बुलाया और उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद उसने सत्ता और बल का इस्तेमाल कर पीड़िता और उसके परिवार पर अत्याचार किए।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने पीड़िता पर दबाव डाला कि वह कुलदीप सेंगर के खिलाफ शिकायत दर्ज न करे। सेंगर के भाई ने युवती के पिता की बेरहमी से पिटाई की और पुलिस की मदद से उन्हें जेल भिजवाया गया, जहां संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई। इस अन्याय के खिलाफ पीड़िता मुख्यमंत्री आवास के सामने आत्मदाह करने पहुंची। मामला बढ़ने पर सीबीआई ने जांच अपने हाथ में ली। सेंगर को गिरफ्तार किया गया और संबंधित पुलिस अधिकारियों तथा सेंगर के भाई के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किए गए।
इससे नाराज होकर सेंगर ने अपने वकील और दो महिला रिश्तेदारों के साथ जा रही पीड़िता को ट्रक से कुचलने की कोशिश करवाई। वर्ष 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कुलदीप सेंगर को दुष्कर्म के आरोप में दोषी ठहराते हुए 25 लाख रुपये के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास तथा पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में 10 वर्ष की सजा सुनाई। छह वर्ष बाद अदालत ने आजीवन कारावास की सजा रद्द कर सेंगर को जमानत पर रिहा कर दिया। सीबीआई ने इस फैसले को चुनौती दी है।
कुलदीप सेंगर बसपा, सपा और बीजेपी की टिकट पर चार बार विधायक रह चुका है। पीड़िता ने हताश होकर कहा कि यदि सेंगर को जेल से रिहा किया जाता है, तो वह अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं जेल जाने को तैयार है, क्योंकि कम से कम जेल में वह सुरक्षित रहेगी। उसने यह भी कहा कि यदि उसकी शादी नहीं हुई होती और उसके बच्चे न होते, तो वह आत्महत्या कर लेती।
ये भी पढ़े: संपादकीय: कितना असर दिखाएगी उद्धव-राज की एकता
जहां सत्ता का मद चढ़ जाता है, वहां न पश्चाताप रहता है और न ही शर्म। बिल्किस बानो मामले के दोषियों की रिहाई पर उनका स्वागत किया गया। महिला पहलवानों का शोषण करने वाले ब्रजभूषण शरण सिंह के मामले को अदालत तक न पहुंचने देने की कोशिशें की गईं और आंदोलन कर रही महिला पहलवानों को पुलिस ने घसीटकर हटाया।
हाथरस दुष्कर्म मामले में चार आरोपियों में से किसी को भी अब तक सजा नहीं हुई। मृत युवती के एक परिजन को सरकारी नौकरी देने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया था, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने भी की, लेकिन आज तक किसी को नौकरी नहीं मिली।दबंग लोग बेखौफ अपराध करते हैं और मानते हैं कि कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। उनके खिलाफ अदालत में गवाही देने की हिम्मत आम लोगों में नहीं होती। पुलिस का रवैया भी ऐसे मामलों में अक्सर ठंडा रहता है। क्या “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” अब सिर्फ एक नारा बनकर रह गया है?
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






