किसानों के हितों की सुरक्षा क्यों जरूरी (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: ‘हमारे लिए हमारे किसानों के हित उच्च वरीयता रखते हैं।भारत कभी भी किसानों, मछुआरों व डेयरी किसानों के हितों के साथ समझौता नहीं करेगा.’प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल में दिए गए इस बयान को गहराई से समझने की आवश्यकता है।उन्होंने यह बात अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ और फिर बतौर जुर्माना अतिरिक्त टैरिफ लगाए जाने के बाद कही।जिस समय भारत व अमेरिका के बीच व्यापार करार पर वार्ता चल रही थी तो ट्रंप ने 25 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया, जिसके कुछ दिन बाद रूस से तेल लेने के नाम पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत का जुर्माना लगा दिया।
इससे कुल टैरिफ बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया, जबकि अमेरिका स्वयं रूस से खाद व अन्य चीजें आयात कर रहा है।इसके बाद ट्रंप ने कहा कि अब भारत से कोई व्यापार डील नहीं होगी।दरअसल, यह डील होनी भी नहीं थी, क्योंकि ट्रंप टैरिफ को हथियार बनाकर भारत पर दबाव बना रहे थे कि दिल्ली अपने बाजार अमेरिका के कृषि उत्पादों के लिए खोल दे यानी उन पर ड्यूटी कम कर दे।
अगर भारत ट्रंप की शर्तों पर व्यापार समझौता कर लेता तो न सिर्फ भारतीय किसानों को जबरदस्त नुकसान होता बल्कि अपने देश में भयंकर बेरोजगारी फैल जाती।इसलिए भारतीय किसानों को आयात से सुरक्षित रखना जरूरी था।जिन मुख्य वस्तुओं पर भारत ने बहुत अधिक टैरिफ लगाया हुआ है, उनमें अमेरिका सहित शेष संसार से आयात होने वाले फूड प्रोडक्ट्स हैं।2022 में अमेरिका से फूड आयात पर औसतन 40.2 प्रतिशत का टैरिफ था और अन्य देशों को मिलाकर यह लगभग 49 प्रतिशत था।
ऐसा इसलिए करना पड़ा, क्योंकि जबरदस्त सरकारी सब्सिडी की वजह से अंतरराष्ट्रीय दाम तो कम हो जाते हैं, लेकिन भारतीय दाम श्रम आधारित कृषि और कम उपज के कारण ऊपर चले जाते हैं।भारत में सरकार की मुफ्त राशन योजना के कारण चावल व गेहूं के दाम स्थिर रहते हैं।
घरेलू व अंतरराष्ट्रीय दामों में यह अंतर तीन मुख्य कारणों से है।एक, भारत में पांच मुख्य उत्पादकों की तुलना में फसलों की प्रति हेक्टेयर उपज कम है।गेहूं, मूंगफली, तूवर व गन्ने को छोड़कर अधिकतर मुख्य फसलों की भारत में प्रति हेक्टेयर उपज प्रमुख देशों की तुलना में कम है।दामों में अंतर का दूसरा बड़ा कारण यह है कि ग्लोबली किसानों को सब्सिडी दी जानी आम बात है, जबकि भारत में यह ‘निगेटिव’ है, जैसा कि वर्ष 2022 के ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) के डाटा से मालूम होता है।चीन ने 2022 में अपने कृषि क्षेत्र को 310 बिलियन डॉलर का आर्थिक सहयोग दिया, जो कि विश्व में सबसे अधिक है।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
इसी तरह अमेरिका (135 बिलियन डॉलर), जापान (33 बिलियन डॉलर), दक्षिण कोरिया (24 बिलियन डॉलर), ब्राजील (10 बिलियन डॉलर), फिलीपीन्स (9 बिलियन डॉलर) यूके (8) बिलियन डॉलर), कनाडा, तुर्की व स्विट्जरलैंड ने 7-7 बिलियन डॉलर का आर्थिक सहयोग अपने किसानों को दिया।दूसरी ओर ओईसीडी का कहना है कि भारत अपने किसानों को कुछ सब्सिडी अवश्य प्रदान करता है लेकिन निर्यात पर जो पाबंदी लगी हुई है, उससे किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उनके कारण वह संभावित लाभ में 42 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाते हैं।वैसे भी भारत में जब बहुत सी फसलें बहुत महंगी पड़ती हैं, जिनके दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार से महंगे हैं तो निर्यात करना आसान भी नहीं है।तीसरा मुख्य कारण यह है कि भारत में अधिकतर कृषि श्रम आधारित है जिससे उत्पादन खर्च बढ़ जाता है।
यूके व जर्मनी में कृषि कार्यबल के केवल 1 प्रतिशत को रोजगार देती है।भारत में कार्यबल का 44 प्रतिशत खेती किसानी में लगा हुआ है।चीन में कार्यबल का 22 प्रतिशत कृषि से जुड़ा है।दक्षिण अफ्रीका में कार्यबल का 19 प्रतिशत कृषि में है व जीवीए हिस्सा 2.9 प्रतिशत है।भारत में किसानों के पास कृषि भूमि निरंतर कम होती जा रही है, श्रम महंगा है व उत्पादन कम है, जिससे दाम अधिक बढ़ जाते हैं।चूंकि सब्सिडी के कारण अंतरराष्ट्रीय दाम कम रहते है, इसलिए भारतीय किसानों के लिए निर्यात की संभावनाएं कम हो जाती है।कृषि उत्पादों पर शून्य टैरिफ, जिसकी ट्रंप मांग कर रहे थे वह भारतीय कृषि को बर्बाद कर देगा, देश में बेरोजगारी की बाढ़ आ जाएगी, भारत की फूड सुरक्षा पटरी से उतर जाएगी और हमें आयात पर अधिक निर्भर होना पड़ जाएगा।इसलिए भारतीय किसानों के हितों को सुरक्षित रखना आवश्यक है.
लेख- शाहिद ए चौधरी के द्वारा